Tuesday, October 17, 2023

“टुकड़ा-टुकड़ा सच” कविता संग्रह समीक्षा —डॉ. अलका वर्मा / वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह “टुकड़ा-टुकड़ा सच”


वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह “टुकड़ा-टुकड़ा सच”
 —डॉ. अलका वर्मा

(पुस्तक समीक्षा)


वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह

“टुकड़ा-टुकड़ा सच”


—डॉ. अलका वर्मा


“मनुष्य होना भाग्य है

कवि होना सौभाग्य”

     किसी ने कहा है और कितना सटिक कहा है। कविता क्या है? यह कहना कठिन है। किसी ने रसात्मक काव्य कहा है तो किसी ने कहा है—

“वियोगी होगा पहला कवि,

आह से उपजा होगा गान,

निकलकर आँखो से चुपचाप

बही होगी कविता अनजान।”

     इस संग्रह में एक से एक हीरे मोती और माणिक भरे हैं। बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक, महाकाव्य “द्वापर गाथा”, खंडकाव्य “अँगूठा बोलता है” जैसे पुस्तकों के रचयिता महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई साहित्य के हर विधा में अपनी लेखनी चलाई है। इनकी रचनाएँ जहाँ दिल को सुकून प्रदान करती है वही कुछ सोचने को विवश करती है। अंदर से सोए मानव को उत्प्रेरित करता है। सच को सच कहने से डरते नहीं थे। “टुकड़ा-चुकड़ा सच” 145 कविता का अमूल्य संग्रह है। जिसमें समाज की हर समस्या की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। कवि के अनुसार सत्य वचन जोखम भरा धंधा है—

“यह तथ्य

एक सगुण सत्य

स्वार्थ–संचालित नर

विवेकहीन, अंधा है

सत्यभाषण इस युग में

ज़ोखम भरा धंधा है”

शीर्षक-जोख़म

     टुकड़ा-टुकड़ा सच महाभारत के पात्रों का पुनः संग्रहण करने का प्रयास किया गया है। इस संग्रह में कवि जाति, कुल, गोत्र की चर्चा ‘पात्रता‘ कविता में करता है—

“पूछते

कुल-गोत्र

जाति-नाम

पात्रता का

प्रतिभा का

आर्यत्व का

आचार्य कृप—

तुम कौन

भीष्म, विदुर, द्रोण

सब के सब मौन

मौन

संपूर्ण कुरु सभा”

शीर्षक-पात्रता

     कवि आशावादी है, उसे पूर्ण विश्वास है जागृति आएगी। आजादी कविता में कहता है-

“ऐसा सोच जगेगा

जी हाँ

ज़रुर जगेगा

पृथ्वी पर उगेगा

समता का बिरवा

संपूर्ण सूबा बनेगा

सजग संवेदी पहरुआ

शासक चाकर

सत्ता सबकी दासी

दिन होली, रात दीवाली

उबरेगी नहीं उदासी

जमकर जंग चलेगी

जमकर भंग छनेगी

लड़ते-लड़ते निश्चय ही

मिलकर रहेगी आज़ादी”

शीर्षक-आज़ादी

     अभाव में भी जीकर कवि संतुष्ट रहने की प्रेरणा देता है-

“पाप

पीड़-प्रदायक

पुण्य

सुखदायक

वस्त्रविहीन, बुभुक्षित

अस्वस्थ, अशिक्षित

लांक्षित, पददलित होकर भी

संतुष्ट रहना

सर्व धर्म-सार है

लोक व्यवहार है”

शीर्षक-सार

     कवि खिन्न है। युद्ध में ब्रह्मास्त्र का प्रयोग तो करते हैं परन्तु संसार को खुश रखने के लिए लोग अपना शौर्य प्रदर्शन क्यों नहीं किया करते है। कवि कहता है-

“क्यों

नहीं छोड़ा

कभी किसी ने

युग व्याधियों पर

ब्रह्मास्त्र

क्यों नहीं किया

कभी किसी ने

शौर्य प्रदर्शन

जन-भीरुता-उनमूलन”

शीर्षक- प्रश्न-1

सच्चाई शीर्षक कविता में कवि एक कटू सत्य की ओर इंगित करता है-

“अमुक

अमुक की औरत

यह बात सही है

मगर

अमुक अमुक का आत्मज

यह निर्विवाद नहीं है”

शीर्षक-सच्चाई

     परिस्थितिवश मनुष्य बदलता रहता है। कवि के शब्दों में-

“परिस्थितियाँ

बदलती हैं

बदलता

आदमी

परिवर्तित

उनके वर्ग

और स्वार्थ”

शीर्षक-परिस्थिति

     कवि मनुष्य को गिरगिट का दर्जा देते हुए कहता है-

“मानव

स्वार्थपुतला

पल-पल रंग बदलता

कभी भूख देह की

कभी चाह गंध की

कभी प्यास प्रेम की

कभी आग पेट की

कभी शासन की कांक्षा

कभी श्रेष्ठत्व की वांछा

व्याप्त अतृप्ति बड़ी

परिशमन हित

महासंग्राम भी अभीष्ट”

शीर्षक-गिरगिट

     कवि महाभारत के पात्र की उपमा देकर आज के प्रजातंत्र की धज्जियाँ उड़ाते हुए कहता है-

“राष्ट्र”

अंधा है

पट्टी बंधी

गांधारी के

प्रजा प्रशांत

भोलीभाली

अवलोक नहीं सकती

अनुभव अक्षि से

शीर्षक-अवलोकन

     सत्य सदा ही संत्रस्त रहा है असत्य अपना परचम दाँव-पेंच चलाता रहा है। कवि के शब्दों में-

“सत्य संत्रस्त

असत्य दहाड़ता है

अन्याय न्यायस्कंधारूढ़

बेशर्म प्रहारता है

द्विधाग्रस्त धर्म

करता कुपथगमन

सदा सुजनता-मेमना

निरीह निरवलंब रिरियाता है”

शीर्षक-विडंबना

     महाकवि धर्म को साधारण आदमी के लिए हौवा मानते हैं। कवि के शब्दों में-

“जन सामान्य

भेड़-बकरी

कहीं यह कटे

तो कहीं वह चढ़े

क्या फ़र्क़ पड़ा है

पुष्ट होता

सोऽहं भाव

किसी का व्यक्तिगत स्वार्थ

महाराजा को अपनी ही चिंता है

और

अबोध आदमी के लिए

धर्म महज़ एक हौआ है”

शीर्षक-हौआ

     महाकवि श्रमिक वर्ग व किसानों के साथ हो रहे शोषण से दुखी है। सरल शब्दों में उनकी बेबसी को उकेरते हैं। कवि के शब्दों में-

“आह न भरते

पीसा जाकर

ज़िंदा रहते

आँसू पीकर

प्रवाहित शोणित

श्रमसीकर

काया पर

पैवंदी बस्तर

सिर पर

सदा आसमानी छप्पर

ग्रीष्म-ताप में तपकर

पावस-पानी में चलकर

खेत-खदान की दलदल में धँसकर

शिशिर बीताते

ठिठुर-ठिठुरकर”

शीर्षक-बेवशी

     इतना हीं नहीं कवि कहता है कि इन्किलाब लाने के लिए एक जुट होने की आवश्यकत्ता है। हँसूआ, खुरपा, कुदाल और स्याही, कलम, किताब जब संग-संग नहीं चलेंगे तबतक इन्किलाब नहीं हो सकता। कवि के शब्दों में-

“हँसुआ, खुरपा, कुदाल

स्याही, क़लम, किताब

मिल साथ जगेंगे

आयेगा

इन्क़िलाब

तनकर झोपड़ी झाँकेगी

मुक्ताकाश विशाल

सूरज होगा सबके हित

पावस दूर करे अकाल

सबके घर ख़ुशहाली

नहीं कोई बेहाल”

शीर्षक-इन्क़िलाब

     “टुकड़ा-टुकड़ा सच” छोटी-छोटी कविता का संग्रह है। कवि का एक एक शब्द सार्थक है। कम शब्दों की कविता और इतनी संवेदनशील यह राई जी की कलम की उपज है जो छंदमुक्त होते हुए भी मन को भाती है। पाठकवृन्द इस पुस्तक को पढ़कर निराश नहीं होंगे । यह एक पठनीय पुस्तक है। इन कविताओं में कृषक शोषण, राजाका अहम, दलितों का उत्पीड़न, नारी की स्थिति, धर्म का विधान, जनता जनार्दन पर राजनेताओं की मनमानी, कर्म की महत्ता के सभी विचारणीय बिन्दु पर दृष्टिपात किया गया है। यह सारे सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक मुद्दे हर युग में एक से ही रहते हैं। वर्चस्व की लड़ाई चलती रही है और चलती रहेगी।

     इस पुस्तक के लेखन के लिए महाकवि राई जी को समाज की स्थिति को अवलोकित करने एवं शोषित वर्गों में चेतना जगाने में अपूर्व सफलता मिली है।




पुस्तक का नाम- “टुकड़ा-टुकड़ा सच” कविता संग्रह

रचनाकार का नाम- ध्रुव नारायण सिंह राई

प्रथम संस्करण- 2022 स्वराज प्रकाशन,

दरियागंज, दिल्ली

मूल्य- 185/-



समीक्षक डॉ. अलका वर्मा

त्रिवेणीगंज, जिला- सुपौल,

बिहार, 852139

मो. — 7631307900

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Dr. Alka Verma YouTube Video मुझे मेरे नाम से पुकारो






द्वितीय संस्करण
डॉ. अलका वर्मा
मुझे मेरे नाम से पुकारो



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परिचय डॉ. अलका वर्मा

नाम: डॉ अलका वर्मा 
पिता :स्व० रामेश्वर प्रसाद
माता : श्रीमती बसंती देवी
पितामह: राजवंशी सहाय,बनौली, दरभंगा 
पति :स्व अनिल कुमार श्रीवास्तव
महथावा बाजार, अररिया 
जन्मस्थान पिपरा बाजार ,सुपौल,
बिहार
जन्म तिथि:12/11/1959
शिक्षा: एम०ए०(द्वय) बी०एड,पी०एच०डी०
संगीत प्रभाकर, उर्दू अधिगम प्रशिक्षण कौर्स(उर्दू निदेशालय द्वारा),विधावाचस्पति की मानद उपाधि,
विद्यासागर की मानद उपाधि 
प्रकाशित-राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में कविता,आलेख गजल, लघुकथा,कहानी, संस्मरण आदि
जैसे नई धारा, राजभाषा,सरिता, हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण,आज, आर्यावर्त ,तर्पण, दस्तक,लोकगंगा,संवदिया,परतीपलार,
आत्मदृष्टि,क्षणदा,जनतरंग,जन आकांक्षा,सुसंभाव्य,प्राच्य प्रभा, स्वाधीनता संदेश,सीमांचल उदय, साहित्यवैभव,सृजनोमुख,कौशिकी ,
स्पर्श, राइजिंग बिहार, जिज्ञासा संसार, पद्मनाभ,किरण दूत,कविता कोश, वसुन्धरा,किरण दृष्टि, कौस्तुभ,भाषासहोदरी,तरूणोदय,बसंत(मारीशस),(हिन्दी)
मिथिला मिहिर,बालबटुक,सखी बहिनपा,बटुक(मैथिली)
सांझा संकलन : कोशी अंचल की लघुकथाएं,आखर के नये घराने,आलोक एवं आलोक की कविताएं, समकालीन हिंदी कविता, गंगा की रानी,गुलाबी गलियां,भाग ले, एहसास 
संरक्षक पद्मनाभ साहित्य मंच,तरूणोदय पत्रिका, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन,पटना,आखिल भारतीय साहित्यिक मंच, खगड़िया 
आजीवन सदस्य:छंदशाला,सामयिक
परिवेश, रेडक्रास सोसायटी सुपौल,
संवदिया पत्रिका ,अररिया

 प्रकाशित पुस्तक:
1 'मुझे मेरे नाम से पुकारो(काव्य संग्रह पुरस्कृत)
2 कहीं अनकही (लघुकथा संग्रह, पुरस्कृत)
3गुलमोहर (कहानी संग्रह) पुरस्कृत 
4 'आओ बच्चों देखो फूल(बाल कविता संग्रह पुरस्कृत)
5 कुछ तेरी कुछ मेरी बात (काव्य संग्रह) हिन्दी में 
6 दर्द गहराता बहुत है(ग़ज़ल संग्रह)
7 /एक टीस(कहानी संग्रह)
8 एक मुट्ठी इजोर(कथा संग्रह पुरस्कृत) 
9 समकालीन मैथिली कविता में प्रगति वादीचेतना(आलोचना) मैथिली में, आदि प्रकाशित पुस्तकें हैं। 
प्रेस में 
1 कुछ तीखी कुछ मीठी (लघुकथा संग्रह )
2 अतीत के झरोखे से (संस्मरण संग्रह)
3 मैथिली कविता संग्रह    
साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक    संस्थाओं से भी संबद्ध है।
2008में कोशी क्षेत्र में आई बाढ़ में कार्य करने पर मारवाड़ी युवा मंच द्वारा सम्मानित 

8 बर्ष तक शिक्षा दान
शिक्षा क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु मुख्य मंत्री द्वारा राजकीय पुरस्कार से सम्मानित एवं पुरस्कृत 

प्रसारण :
आकाशवाणी 'शतदल' में काव्यपाठ, लघुकथा पाठ,कथा पाठ
  दूरदर्शन 'साहित्यिक 'में मंच संचालन
और काव्यपाठ
'खुला आकाश'में वार्ता 

        अनेक सम्मानों से सम्मानित 
राजकीय शिक्षक पुरस्कार 
1 विधासागर की मानद उपाधि (बिक्रमशिला विद्यापीठ)2023
2 सहोदरी सम्मान, अंतरराष्ट्रीय हिंदी
सम्मेलन , महात्मा गांधी संस्थान,मारीशस2023
3 हिन्दी रत्न(बिक्रमशिला विद्यापीठ)2023
4 कबीर कोहिनूर पुरस्कार,नागौर, राजस्थान 2023
5 नेपाल भारत साहित्य महोत्सव में सम्मानित (नेपाल)2023
6 भारत रत्न डॉ अम्बेडकर कीर्ति रत्न 
सम्मान,जायल राजस्थान,,2023
7 राष्ट्रकवि दिनकर सारस्वत सम्मान(राष्ट्रकवि दिनकर अकादमी, मुजफ्फरपुर)2023
8 नारी सशक्तिकरण के लिए प्रशासन से सम्मानित 2023
9 लघुकथा पाठ महारथी सम्मान, सामयिक परिवेश द्वारा 2023
10 कोशी साहित्य शोर्य सम्मान (स्वर्ण सम्मान)अखिल भारतीय साहित्य सृजन मंच खगड़िया 2023
11 साहित्य सेवा सम्मान, गोरखपुर 2023
12 निर्मल मिलिंद बाल साहित्य शिखर सम्मान, हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान,बनौली, दरभंगा 2023
13 शिक्षा मार्तण्ड सम्मान, डॉ राजेन्द्र प्रसाद कला एवं युवा विकास समिति
समस्तीपुर 
14 निर्मल इंडिया न्यूज़ द्वारा तिरहुत अमृत महोत्सव में सम्मानित 2023
15 साहित्य गौरव सम्मान (जिज्ञासा संसार और गोस्वामी जागरण मंच)2023
16 स्नेह शंभू अगेही शिखर सम्मान, हिन्दी समाहार मंच, दरभंगा 2023
17 ओजस्विनी नारी सम्मान 2023
18 विश्व हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान 2023
19 पद्भनाभ नारी शक्ति सम्मान 2023
20 साहित्य सेवी‌ रत्न सम्मान 2022(थावे विद्यापीठ द्वारा उड़ीसा में)
21 भारत गौरव की उपाधि (बिक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ ,गांधीनगर)2022
22 पद्मनाभ पर्यावरण संरक्षक सम्मान
                 2022
23 डॉ हरिवंशराय बच्चन स्मृति सम्मान           
                 2022
24 अन्तराष्ट्रीय बसवा जयंती,नेपाल में सम्मानित 2022
25 सामयिकपरिवेश रत्न सम्मान 2022
26 आदि शक्ति प्रेम नाथ खन्ना            नाट्योत्सव में सम्मानित2022
27 सामयिक परिवेश रत्न सम्मान (लघुकथा के लिए)2022
28 मां मालती देवी स्मृति सम्मान 2022
29 पद्भनाभ रंगोत्सव सम्मान 2022
30 समाज सेवा रत्न सम्मान, जिज्ञासा संसार 2022
31 साहित्यक गौरव सम्मान ,बुलंदी साहित्य संस्थान 2022
32 पद्मनाभ हिन्दी गौरव सम्मान 2022
33 SM न्यूज द्वारा प्रतिभा सम्मान से सम्मानित 2022
34 पद्भनाभ साहित्य साधक सम्मान से सम्मानित 2022
35 कथा साहित्य गौरव सम्मान (कही अनकही)से सम्मानित 2022
36 एम बी एकेडमी द्वारा सम्मानित 2022
37 अंग रत्न सम्मान (अखिल भारतीय साहित्य परिषद, भागलपुर)2022
38 राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा अयोध्या में सम्मानित 2022
39 चतुवेर्दी प्रतिभा मिश्र साहित्य साधना सम्मान (बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन,पटना)2022
40 सहभागिता सम्मान (बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन,पटना)2022
41 श्री केशव स्मृति सम्मान 2022
42 दिनकर सम्मान202 1 (बिहारशरीफ)
43 राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मानित 2021
44 किरण दृष्टि द्वारा सम्मानित 2021
45 अष्ठाना कला मंच द्वारा सम्मानित 
46 गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति (स्वायत निकाय सांस्कृतिक मंत्रालय) द्वारा सहभागिता प्रमाण पत्र2021
47 विधावाचस्पति सारस्वत सम्मान (बिक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर)20 21
48 युवा साहित्यकार सम्मान  2021 (बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन,पटना)
49 पद्मनाभ सृजन सम्मान 2021
50 भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन द्वारा
सम्मानित 2021
51 लेख्यमंजूषा द्वारा सम्मान 2020
52 देवशील मेमोरियल द्वारा सम्मानित                  2020
53 काव्य गौरव सम्मान, स्पर्श भारती द्वारा 2020
54 साहित्य गौरव सम्मान,अष्ठाना कला मंच द्वारा 2020
55 हरिमोहन झा राष्ट्रीय शिखर सम्मान2019
56 भारतीयसाहित्यसम्मान2019,
57 जानकी बल्लभ शास्त्री स्मृति सम्मान 2019
58 राष्ट्रीयकवि संगम द्वारा सम्मानित 2019
59 नये पल्लव सम्मान2019
60 सहभागिता सम्मान (मैथिली लेखक संघ )2019
61 राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा बेगुसराय
में सम्मानित 2019
62 सुभद्रा कुमारी चौहान राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान2018
63 आरसी प्रसाद सिंह रजत स्मृति,2018
64 ओम शांति द्वारा सम्मान2018
65 शिवानी राष्ट्रीय निखर सम्मान2018
66 जन संस्कृति सम्मान 2018
67 हरिवंश नारायण बच्चन स्मृति सम्मान2018
68 विद्या नारायण स्मृति सम्मान 2018
69 श्री कपिल मुनि सिंह अंग विभूति सम्मान 2018
70 काव्य भूषण, 2018
71 राजकीय शिक्षक सम्मान एवं पुरस्कार मुख्यमंत्री द्वारा 2018
72 मथुरा प्रसाद स्मृति सम्मान2017
73 लोक सेवा सम्मान2017
74 कवि अमोघ स्मृति सम्मान 2017
75 काव्य भूषण सम्मान,2017
76 कोशिकी रत्न सम्मान 2017
77 नारी सशक्तिकरण हेतु जिला प्रशासन से सम्मानित  2016
78 जन साहित्य सेवा सम्मान, 2014
79 नागार्जुन सम्मान एवं साहित्य अलंकरण,2014
80 काव्य गौरव सम्मान 2014
81 रहीम सम्मान एवं साहित्य अलंकरण2014
82 तुलसीदास सम्मान एंव साहित्य अलंकरण 2012
83 शांति मैत्री सम्मान2010
84 बाढ़ में किए गए कार्य के लिए
मारवाड़ी युवा मंच द्वारा सम्मानित 2008
85 सद्भावना   शिक्षक पुरस्कार
 
डॉ अलका वर्मा
 पूर्व प्राचार्य 
त्रिवेणीगंज ,सुपौल 852139
बिहार
मो 7631307900
ई मेलdralka59@gmail.com
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Friday, October 13, 2023

एक प्रेरक पुंज है “अँगूठा बोलता है” खण्डकाव्य - डॉ. अलका वर्मा

एक प्रेरक पुंज है “अँगूठा बोलता है” खण्डकाव्य - डॉ. अलका वर्मा



(पुस्तक समीक्षा)

एक प्रेरक पुंज है  “अँगूठा बोलता है” खण्डकाव्य

- डॉ. अलका वर्मा


          खंडकाव्य वह काव्य होता है जिसमें एक कथा का सूत्र विभिन्न छंदों के माध्यम से जुड़ा रहता है। खंड काव्य के नायक का जीवन के व्यापक चित्रण के स्थान पर किसी क पक्ष , अंश अथवा रुप का चित्रण होता है। हिन्दी के प्रमुख खंडकाव्य मैथिलीशरण गुप्त का ‘जयद्थवध’, ‘पंचवटी’ तथा ‘नहुष’, सियाराम शरण गुप्त का ‘र्मौय विजय’, रामनरेश त्रिपाठी का ‘पाथिक’, निराला कृत ‘तुलसीदास’, प्रसाद कृत ‘प्रेम पाथिक’ प्रसिद्ध खंडकाव्य है। उसी श्रृखला में ध्रुव नारायण सिंह राई रचित “अँगूठा बोलता है” खंडकाव्य अप्रतिम, सरस, समृद्ध एवं शोषित दलितों का प्रतिनिधित्व करता एक अनुपम कृति है।

          “अँगूठा बोलता है ” आज की युग की चेतना से प्रभावित है। कवि एकलव्य जैसा दलित, उपेक्षित निरीह व्यक्ति को अपने काव्य का विषय बनाना उनकी लेखनी की प्रखरता प्रवीणता हृदय की संवेदनशीलता को दर्शाती है। उन्हें वर्ण वैमन्स्यता पर क्षोभ है, कहते हैं जब प्रकृति भेद भाव नहीं रखती फिर हम मानव क्यों 

प्राणदायिनी हवा हमेशा

सर्वसुलभ सब नासिका पास।

विगलित हो धरती की ममता

क्षीर सदृश बहती अनायास।


सहज प्राप्य हैं सूर्य-रश्मियाँ

शीतल स्वच्छ सब सरिता सलिल।

सुधा-सीकर बरसाती निशा

सबके हित ये तारे झिलमिल।

(प्रथम सर्ग)

          नौ सर्ग में विभक्त यह खंडकाव्य की सारी लक्षणों से परिपूर्ण एक विलक्षण काव्य है। प्राकृतिक उपादानों–उपमानों द्वारा प्रकृति का मनोहारी परिवेश का वर्णन करते हुए समानता की बात करते हैं-

जब हुआ सृष्टि का सूर्योदय,

यहाँ जगत् में कहीं नहीं था

वर्ण-भेद का कलुषित विचार,

वर्ग - वैषम्य - बोध अन्यथा।

(प्रथम सर्ग)

          द्रोण अपने व्यवहार से खिन्न थे। वे द्रुपद से बदला लेने को कृत संकल्पित थे। ऐसी अवस्था में हस्तिनापुर का गुरुपद  पाकर धन्य हुए, वे उन राजपुत्रों में सर्वक्षेष्ठ ढूढ़ रहे जो अपमान की अग्नि से झुलसे हुए हृदय को ठंडक प्रदान कर सके। एकलव्य जब शिक्षा की भिक्षा के लिए द्रोण के पास पहुँचा। शिक्षा उस समय सवर्णों की बपौती थी। शूद्रों को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार ही नहीं था। दानवीर कर्ण जैसे महायोद्धा को भी इस दंश को झेलना पड़ा था। छद्म नाम से शिक्षा ग्रहण किए थे, जिस कारण शापित होना पड़ा था। सवर्ण इस अधिकार को क्यों शूद्र को देना चाहेगा। एकलव्य के अनुरोध को गुरु के क्रोध का सामना करना पड़ा

अपावन बना दी है तुमने

आज मेरे आश्रम की ठाँव।

अब लौट जाओ तुम यहाँ से

अछूत, अविलंब उलटे पाँव।


नहीं तो खींच लूँगा अवश्य

ज़बानदराज़, जिह्वा तेरी।

औ’ उधेड़़ दूँगा निश्चित ही

अधम, अस्पृश्य चमड़़ी तेरी।

       (तृतीय सर्ग)

          जबकि वह विनती के साथ गुरु से अनुनय करता है। कवि के शब्दों में –

नहीं समुचित गुरुवर यह कोप

मैं तो विशुद्ध दया का पात्र।

बनकर सदाशय-उदारमना

बना लें मुझको अपना छात्र।


दें निज प्रेम-पीयूष प्रसाद

खोलें विद्या-द्वार अवरुद्ध।

तोड़़कर प्राचीन परम्परा

बनाएँ शूद्र को भी सुबुद्ध।

       (तृतीय सर्ग)

          जब वन भ्रमण के क्रम में  कुत्ते के मुख को बाणों से विद्ध देखा तो चकित हो धर्नुधर का परिचय पूछते हैं। तब एकलव्य सरल शब्दों में अपना परिचय देता है-

जन्म से हीन; किंतु कर्म से

कोशिश कर मैं बन सका सबल।

करता हूँ शस्त्राभ्यास यहाँ

नाम जापकर गुरु का निर्मल।


चाहता केवल दलितोद्धार

नहीं निहित कुछ उद्देश्य अथच।

लक्ष्य मात्र करूँ धराशायी

रुढ़़ परम्परा को, भेद कवच।

(चतुर्थ सर्ग)

          एकलव्य गुरुदक्षिणा देकर भी अविचल खड़ा रहा। कवि के शब्दों में-

खड़़ा रहा एकलव्य अविचल

ज्यों बड़ा शूरमा अलबेला।

लगी प्रतिमा अपरिचित उसको

जैसे कोई बेजान शिला।

(पंचम सर्ग)

          जबकि प्रकृति का कण-कण सिहर उठा था, कवि के शब्दों में-

प्रकृति सिहरी, सिहरा संसार

दस दिशाएँ सब उठीं पुकार।

हा ! त्राहि-त्राहि! मची गगन में,

गुंजा वन में आर्त्त चित्कार।

(पंचम सर्ग)

          एकलव्य दीन दलित का प्रतिनिधित्व करता है। अँगूठा गवाने के पश्चात् माता-पिता के इस कथन –

मैं कहता था–वत्स, व्यर्थ यूँ

उसके हित कोशिश करते हो,

मर मिटोगे किंतु न मिलेगा

नाहक ऐसी ज़िद करते हो।

(सप्तम सर्ग)

          के जबाब में गर्वोक्ति-

नहीं पिताजी, नहीं मिलेगा

कभी भी शूद्रों को अधिकार।

नहीं मिटेगा, नहीं मिटेगा

दीपक जले बिना अंधकार।


ब्राह्मणों ने निज स्वार्थ निमित्त

कठोर निषेध-नियम बनाया।

क्षत्रिय ने निज बल-वैभव से

धरती पर इसको फैलाया।

(सप्तम सर्ग)

          एकलव्य निराश नहीं होकर कर्म को धर्म मानता है। क्रांति का संदेश देता है। निराश न होने की प्रेरणा भी देता है। कवि के शब्दों में-

शूद्र होने का मुझको गर्व

मैं नहीं कम किसी सवर्ण से।

सदा विचार बड़़ा रखता हूँ

कुछ फ़र्क़ न पड़़ता अवर्ण से।

(अष्टम सर्ग)

          साथ ही एकलव्य शूद्रों को जगाना चाहता है।

जगाना नहीं है उकसाना,

मैं सुसुप्तों को जगाता हूँ।

शूद्र जबतक सोया रहेगा

हीन रहेगा समझाता हूँ।

(अष्टम सर्ग)

          कवि एकलव्य के माध्यम से युवकों को प्रेरणा देता है-

चलनेवाला पाता मंजिल

चढ़़ जाता सर्वोच्च सोपान।

अवर्ण हो अथवा हो सवर्ण

संरक्षित करता स्वाभिमान।

(अष्टम सर्ग)

          गुरु द्रोण अँगूठा दान में ले तो लेते हैं किन्तु अन्दर तक हिल जाते हैं कवि एक नवीन प्रसंग को अपने काव्य में स्थान देकर गुरु द्रोण के प्रति मानवीय संवेदना व्यक्त करते हैं। तदापि एकलव्य अँगूठा देकर उच्च स्थान प्राप्त कर लेता है किन्तु गुरु द्रोण अपनी ही नजर में गिर जाता है। गुरु पद पर जन-जन को अँगूली उठाने पर वाध्य कर देता है, गुरु की महिमा धूमिल हो जाती है। फिर भी एकलव्य यह नहीं कहता नफरत करो कहता अपनी सोच में आफतब लाओ

नफ़रत से नफ़रत बढ़़ती है

पहले इसकी चिता जलाओ।

किसने तुमको रक्खा वंचित

इस विचार को मत धधकाओ।


यह सच बात है कि लड़़कर ही

केवल, ना आता इन्कि़लाब।

इसके लिए ज़रूरी जगना

उगाना सोच का आफ़ताब।

(अष्टम सर्ग)

      कवि ने धर्म की परिभाषा बहुत ही सुन्दर ढ़ंग से परिभाषित किया है। वे सुकर्म को ही श्रेष्ट धर्म मानते हैं। अगर पतित को हाथ का सहारा देकर उठाते हैं, उसके प्रति मन में स्नेह भाव रखते हैं वह मनुष्य ही श्रेष्ठ कहलाता है। कवि के शब्दों में-

धर्म-प्राणीमात्र की सेवा,

रखना अतुलित स्नेह हृदय में;

करना कर्म सदैव महत्तर

और सुजन-सत्कार निलय में।


कर न्योछावर निज जीवन भी

बनाना पतित को भी उत्तम।

यही सुकर्म, यही श्रेष्ठ धर्म

सदा संसार में सुंदरतम।

(प्रथम सर्ग)

तथा इसके साथ धर्म कर्म का समायोजन कर कहता है-

धर्म वह जो इंसाँ बनाता,

सुकर्म बनाता सुभट बलवान्।

समझ बनाती सबको सक्षम

आत्मविश्वास बनाता महान्।


जगाओ आत्मविश्वास अटल

यदि तुमको ऊपर उठना है;

अंतर में प्रज्वालो ज्वाला

वर्णाश्रम ज़ीना चढ़़ना है।


प्रयत्न कर ही चढ़ता मानव

जीवन में उत्कर्ष-सोपान।

जो बैठा रहता अकर्मण्य

उसे पददलित करता जहान।

(सर्ग अष्टम)

     यह खंडकाव्य ध्रुव नारायण सिंह राई की रचना ‘अँगूठा बोलता है’ साहित्यकाश में ध्रुव तारा समान स्थिर और चमकता रहेगा, भटके हुए समाज को रास्ता दिखाता रहेगा।

कवि के शब्दों में-

नाम से कुछ काम ना होता

सुकाम बड़ा होना चाहिए।

मनुज सवर्ण हो अथवा शूद्र

विचार खरा होना चाहिए।

(सर्ग अष्टम)

     यह खंडकाव्य जन जन के आँखों पर असमानता का पड़ा पर्दा हटाने के लिए काफी है, यह इंकलाब की आवाज उठाने वाला क्रांति मंत्र है। हम अपने स्थिति पर रोए नहीं बल्कि आगे बढ़ने का रास्ता बनाए। अतः यह एक प्रेरक खंडकाव्य है।

     फिर अष्टम सर्ग में कवि एकलव्य एकालाप माध्यम से कहता है शूद्र को भी समान अधिकार मिलना चाहिए। वह सवर्णों से कम नहीं। दलित को सामान अधिकार देने के पक्ष में कवि का प्रयास प्रशंसनीय, प्रेरणादायक और अनुकरणीय है । जिसे कवि शब्दों में- 

अतः मैं कहता—करो यक़ीन

शूद्र न कभी सवर्णों से कम।

समझो, संचेतो, ऐ शूद्रो!

करो सोत्साह सुकर्म हरदम।

 (सर्ग अष्टम)

     नारी सशक्तिकरण को कवि आवश्यक समझता है। 

कवि शब्द में-

पर युवकों का हाथ चाहिए ,

आवश्यक युवतियों का साथ।

नारी सशक्तिकरण बिना, हम

कभी नहीं हो सकते सनाथ।

(सर्ग अष्टम)

     अँगूठा बोलता है एक सोद्देश्यपूर्ण, शोषितों का प्रतिनिधित्व करता काव्य है, एकलव्य के माध्यम से     

     वे सामंतवादी व्यवस्था का धृणित रुप सबके समक्ष रखते है। इस काव्य की विलक्षण प्रतिभा उभर कर खंडकाव्य की उत्तेजक उत्पीड़क शक्ति हमारे मन को झकझोर देती है साथ ही कवि शब्द धारा प्रेरणा बन एक नया शक्ति संचार करती है। प्राचीन युग की क्या कहा जाय, आज भी हम कुत्सित मानसिकता से उबर नहीं पाए हैं। उबरना होगा, जन-जन में क्रांति की मशाल जलानी होगी, तभी राष्ट्रीय एकता की बात कर सकेंगे। इस खण्ड काव्य में जमीनी हकीकत की बयानी है और जुल्मों सितम से लड़ने की प्रेरणा भी। 

     कविवर ध्रुव नारायण सिंह राई साहित्यकाश का ध्रुव तारा हैं तथा उनकी यह अमर कृति युग-युग तक जन-जन के दिलों में अपना स्थान कायम करेगी। यह विश्वास है “अँगूठा बोलता है” कवि के नाम सदृश ही साहित्याकाश में चमकता रहेगा।

 


पुस्तक का नाम- “अँगूठा बोलता है” खण्डकाव्य

रचनाकार का नाम- ध्रुव नारायण सिंह राई

प्रथम संस्करण- 1997 माधविका प्रकाशन

द्वितीय संस्करण- 2022 स्वराज प्रकाशन,    

                          दरियागंज, दिल्ली 

                                    मूल्य- 175/- 


समीक्षक डॉ. अलका वर्मा

त्रिवेणीगंज, जिला- सुपौल, 

बिहार,   852139

मो. — 7631307900

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डॉ. अलका वर्मा



डॉ. अलका वर्मा जी का परिचय -


नाम: डॉ अलका वर्मा 

पिता :स्व० रामेश्वर प्रसाद

माता : श्रीमती बसंती देवी

पितामह: राजवंशी सहाय, बनौली, दरभंगा 

पति :स्व अनिल कुमार श्रीवास्तव

महथावा बाजार, अररिया 

जन्मस्थान पिपरा बाजार, सुपौल, बिहार

जन्म तिथि:12/11/1959

शिक्षा: एम०ए०(द्वय) बी०एड,पी०एच०डी०

संगीत प्रभाकर, उर्दू अधिगम प्रशिक्षण कौर्स(उर्दू निदेशालय द्वारा),विधावाचस्पति की मानद उपाधि,

विद्यासागर की मानद उपाधि 

प्रकाशित-राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में कविता,आलेख गजल, लघुकथा,कहानी, संस्मरण आदि

जैसे नई धारा, राजभाषा,सरिता, हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण,आज, आर्यावर्त ,तर्पण, दस्तक,लोकगंगा,संवदिया,परतीपलार,

आत्मदृष्टि,क्षणदा,जनतरंग,जन आकांक्षा,सुसंभाव्य,प्राच्य प्रभा, स्वाधीनता संदेश,सीमांचल उदय, साहित्यवैभव,सृजनोमुख,कौशिकी ,

स्पर्श, राइजिंग बिहार, जिज्ञासा संसार, पद्मनाभ,किरण दूत,कविता कोश, वसुन्धरा,किरण दृष्टि, कौस्तुभ,भाषासहोदरी,तरूणोदय,बसंत(मारीशस),(हिन्दी)

मिथिला मिहिर,बालबटुक,सखी बहिनपा,बटुक(मैथिली)

सांझा संकलन : कोशी अंचल की लघुकथाएं,आखर के नये घराने,आलोक एवं आलोक की कविताएं, समकालीन हिंदी कविता, गंगा की रानी,गुलाबी गलियां,भाग ले, एहसास 

संरक्षक पद्मनाभ साहित्य मंच,तरूणोदय पत्रिका, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन,पटना,आखिल भारतीय साहित्यिक मंच, खगड़िया 

आजीवन सदस्य:छंदशाला,सामयिक

परिवेश, रेडक्रास सोसायटी सुपौल,

संवदिया पत्रिका ,अररिया


 प्रकाशित पुस्तक:

1 'मुझे मेरे नाम से पुकारो(काव्य संग्रह पुरस्कृत)

2 कहीं अनकही (लघुकथा संग्रह, पुरस्कृत)

3 गुलमोहर (कहानी संग्रह) पुरस्कृत 

4 'आओ बच्चों देखो फूल(बाल कविता संग्रह पुरस्कृत)

5 कुछ तेरी कुछ मेरी बात (काव्य संग्रह) हिन्दी में 

6 दर्द गहराता बहुत है(ग़ज़ल संग्रह)

7 एक टीस(कहानी संग्रह)

8 एक मुट्ठी इजोर(कथा संग्रह पुरस्कृत) 

9 समकालीन मैथिली कविता में प्रगति वादीचेतना(आलोचना) मैथिली में, आदि प्रकाशित पुस्तकें हैं। 

प्रेस में 

1 कुछ तीखी कुछ मीठी (लघुकथा संग्रह )

2 अतीत के झरोखे से (संस्मरण संग्रह)

3 मैथिली कविता संग्रह    

साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से भी संबद्ध है।

2008 में कोशी क्षेत्र में आई बाढ़ में कार्य करने पर मारवाड़ी युवा मंच द्वारा सम्मानित 


8 बर्ष तक शिक्षा दान

शिक्षा क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु मुख्य मंत्री द्वारा राजकीय पुरस्कार से सम्मानित एवं पुरस्कृत 

प्रसारण :

आकाशवाणी 'शतदल' में काव्यपाठ, लघुकथा पाठ,कथा पाठ

 दूरदर्शन 'साहित्यिक 'में मंच संचालन

और काव्यपाठ

'खुला आकाश'में वार्ता 


सम्मान अनेक सम्मानों से सम्मानित 

राजकीय शिक्षक पुरस्कार 

1 विधासागर की मानद उपाधि (बिक्रमशिला विद्यापीठ)2023

2 सहोदरी सम्मान, अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन , महात्मा गांधी संस्थान,मारीशस2023

3 हिन्दी रत्न(बिक्रमशिला विद्यापीठ)2023

4 कबीर कोहिनूर पुरस्कार,नागौर, राजस्थान 2023

5 नेपाल भारत साहित्य महोत्सव में सम्मानित (नेपाल)2023

6 भारत रत्न डॉ अम्बेडकर कीर्ति रत्न सम्मान,जायल राजस्थान,,2023

7 राष्ट्रकवि दिनकर सारस्वत सम्मान(राष्ट्रकवि दिनकर अकादमी, मुजफ्फरपुर)2023

8 नारी सशक्तिकरण के लिए प्रशासन से सम्मानित 2023

9 लघुकथा पाठ महारथी सम्मान, सामयिक परिवेश द्वारा 2023

10 कोशी साहित्य शोर्य सम्मान (स्वर्ण सम्मान)अखिल भारतीय साहित्य सृजन मंच खगड़िया 2023

11 साहित्य सेवा सम्मान, गोरखपुर 2023

12 निर्मल मिलिंद बाल साहित्य शिखर सम्मान, हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान,बनौली, दरभंगा 2023

13 शिक्षा मार्तण्ड सम्मान, डॉ राजेन्द्र प्रसाद कला एवं युवा विकास समिति समस्तीपुर 

14 निर्मल इंडिया न्यूज़ द्वारा तिरहुत अमृत महोत्सव में सम्मानित 2023

15 साहित्य गौरव सम्मान (जिज्ञासा संसार और गोस्वामी जागरण मंच)2023

16 स्नेह शंभू अगेही शिखर सम्मान, हिन्दी समाहार मंच, दरभंगा 2023

17 ओजस्विनी नारी सम्मान 2023

18 विश्व हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान 2023

19 पद्भनाभ नारी शक्ति सम्मान 2023

20 साहित्य सेवी‌ रत्न सम्मान 2022(थावे विद्यापीठ द्वारा उड़ीसा में)

21 भारत गौरव की उपाधि (बिक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ ,गांधी नगर)2022

22 पद्मनाभ पर्यावरण संरक्षक सम्मान 2022

23डॉ हरिवंशराय बच्चन स्मृति सम्मान 2022

24 अन्तराष्ट्रीय बसवा जयंती,नेपाल में सम्मानित 2022

25 सामयिकपरिवेश रत्न सम्मान 2022

26 आदि शक्ति प्रेम नाथ खन्ना नाट्योत्सव में सम्मानित2022

27 सामयिक परिवेश रत्न सम्मान (लघुकथा के लिए)2022

28 मां मालती देवी स्मृति सम्मान 2022

29 पद्भनाभ रंगोत्सव सम्मान 2022

30 समाज सेवा रत्न सम्मान, जिज्ञासा संसार 2022

31 साहित्यक गौरव सम्मान ,बुलंदी साहित्य संस्थान 2022

32 पद्मनाभ हिन्दी गौरव सम्मान 2022

33 SM न्यूज द्वारा प्रतिभा सम्मान से सम्मानित 2022

34 पद्भनाभ साहित्य साधक सम्मान से सम्मानित 2022

35 कथा साहित्य गौरव सम्मान (कही अनकही)से सम्मानित 2022

36 एम बी एकेडमी द्वारा सम्मानित 2022

37 अंग रत्न सम्मान (अखिल भारतीय साहित्य परिषद , भागलपुर)2022

38 राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा अयोध्या में सम्मानित 2022

39 चतुवेर्दी प्रतिभा मिश्र साहित्य साधना सम्मान (बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन,पटना)2022

40 सहभागिता सम्मान (बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन,पटना)2022

41 श्री केशव स्मृति सम्मान 2022

42 दिनकर सम्मान202 1(बिहारशरीफ)

43 राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मानित 2021

44 किरण दृष्टि द्वारा सम्मानित 2021

45 अष्ठाना कला मंच द्वारा सम्मानित 

46 गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति (स्वायत निकाय सांस्कृतिक मंत्रालय) द्वारा सहभागिता प्रमाण पत्र2021

47 विधावाचस्पति सारस्वत सम्मान (बिक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर)20 21

48 युवा साहित्यकार सम्मान 2021 (बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन,पटना)

49 पद्मनाभ सृजन सम्मान 2021

50 भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन द्वारा सम्मानित 2021

51 लेख्यमंजूषा द्वारा सम्मान 2020

52 देवशील मेमोरियल द्वारा सम्मानित 2020

53 काव्य गौरव सम्मान, स्पर्श भारती द्वारा 2020

54 साहित्य गौरव सम्मान,अष्ठाना कला मंच द्वारा 2020

55 हरिमोहन झा राष्ट्रीय शिखर सम्मान2019

56 भारतीयसाहित्यसम्मान2019,

57 जानकी बल्लभ शास्त्री स्मृति सम्मान 2019

58 राष्ट्रीयकवि संगम द्वारा सम्मानित 2019

59 नये पल्लव सम्मान2019

60 सहभागिता सम्मान (मैथिली लेखक संघ )2019

61 राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा बेगुसराय में सम्मानित 2019

62 सुभद्रा कुमारी चौहान राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान2018

63 आरसी प्रसाद सिंह रजत स्मृति,2018

64 ओम शांति द्वारा सम्मान2018

65 शिवानी राष्ट्रीय निखर सम्मान2018

66 जन संस्कृति सम्मान 2018

67 हरिवंश नारायण बच्चन स्मृति सम्मान2018

68 विद्या नारायण स्मृति सम्मान 2018

69 श्री कपिल मुनि सिंह अंग विभूति सम्मान 2018

70 काव्य भूषण, 2018

71 राजकीय शिक्षक सम्मान एवं पुरस्कार मुख्यमंत्री द्वारा 2018

72 मथुरा प्रसाद स्मृति सम्मान2017

73 लोक सेवा सम्मान2017

74 कवि अमोघ स्मृति सम्मान 2017

75 काव्य भूषण सम्मान,2017

76 कोशिकी रत्न सम्मान 2017

77 नारी सशक्तिकरण हेतु जिला प्रशासन से सम्मानित 2016

78 जन साहित्य सेवा सम्मान, 2014

79 नागार्जुन सम्मान एवं साहित्य अलंकरण,2014

80 काव्य गौरव सम्मान 2014

81रहीम सम्मान एवं साहित्य अलंकरण2014

82 तुलसीदास सम्मान एंव साहित्य अलंकरण 2012

83 शांति मैत्री सम्मान2010

84 बाढ़ में किए गए कार्य के लिए मारवाड़ी युवा मंच द्वारा सम्मानित 2008

85 सद्भावना शिक्षक पुरस्कार

 

डॉ अलका वर्मा

पूर्व प्राचार्य 

त्रिवेणीगंज ,सुपौल 852139

बिहार

मो - 7631307900

ई मेल - dralka59@gmail.com

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Monday, October 9, 2023

राष्ट्र की धरोहर है “द्वापर गाथा” महाकाव्य - डॉ. अलका वर्मा

🔗
द्वापर गाथा
महाकाव्य
ध्रुव नारायण सिंह राई

(पुस्तक समीक्षा)

राष्ट्र की धरोहर है “द्वापर गाथा” महाकाव्य

- डॉ. अलका वर्मा


मां निषाद प्रतिष्ठा त्वगम शाश्वती समाः।

यत्क्रौचमिथुनादेकमबधी काममोहितम।।

      अर्थात हे दुष्ट तुमने प्रेम में मगन क्रौच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा। इसी के बाद वाल्मीकि ने ‘रामायण’ लिखा और अमर हो गए।

      “जिसमें सर्गों का निबंधन हो वह महाकाव्य कहलाता है। महाकाव्य का शाब्दिक अर्थ “महान काव्य” होता है। प्राचीन काल से ही विभिन्न विद्वानों ने महाकाव्य की परिभाषा भिन्न-भिन्न रूप में दिए हैं। महाकाव्य वास्तव में किसी ऐतिहासिक या पौराणिक महापुरूष की संपूर्ण जीवन का आद्योपान्त वर्णन होता है, हिन्दी का प्रथम महाकाव्य चंदबरदाईकृत ‘पृथ्वीराज रासो‘ को महाकव्य माना जाता है, हिन्दी के कुछ प्रसिद्ध महाकाव्य हैं- ‘रामचरित मानस‘, ‘साकेत’, ‘कामायनी’, ‘पद्मावत’, ‘उर्वशी’, ‘प्रिय प्रवास’, ‘लोकायतन’ आदि।

     आधुनिक युग में महाकाव्य के प्राचीन प्रतिमानों में प्ररिवर्त्तन हुआ, अब सिर्फ ऐतिहासिक कथा नहीं मानव जीवन की कोई भी धटना या समस्या महाकाव्य का विषय हो सकता है। महाकाव्य महाभारत के पात्रों को लेकर अनेक खण्डकाव्य और महाकाव्य लिखे जा चुके हैं। श्री ध्रुव नारायण सिंह ‘राई’ रचित यह द्वापर गाथा ‘महाकाव्य’ महाभारत के विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या करता हुआ अठारह सर्ग में विभक्त है। महाभारत भी अठारह सर्ग का है। एक छोटे से कस्बे के शिक्षक अपनी लेखनी से वर्तमान समय में कोई महाकाव्य लिखता है तो वह महाकाव्य कवि का ही नहीं समाज का भी धरोहर है। काव्य का लेखन को कहा जाता है –

मनुष्य होना भाग्य है

कवि होना सौभाग्य है

     विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार के लक्षण बताए हैं। यह महाकाव्य उन सारी लक्षणों में खरी उतरती है। हिन्दी महाकाव्य का सृजन की परंपरा में तीन तत्व कथावस्तु, नायक तथा रस मान्य है। सारे तत्व इस महाकाव्य में मौजुद है।

     इस महाकाव्य के रचयिता महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई गाँव की मिट्टी में पले बढ़े निम्न मध्यम वर्गीय परिवार के ज्येष्ठ पुत्र कठिन परिश्रम एवं जीवन के झंझावातों से लड़कर अपने मुकाम पर पहुँचे। एक शिक्षक के रुप में, एक प्राधानाध्यापक के रुप में, एक साहित्यकार के रुप में सिर्फ त्रिवेणीगंज जैसे कसबे को ही नहीं जिला, राष्ट्र का नाम रोशन किया, कहा जाता पानी स्वयं अपना रास्ता ढूढ़ लेती है। उनके अपने उज्जवल चरित्र ने स्वयं अपना स्थान समाज में बनाया, स्वयं ही नहीं सैकड़ो बच्चों का भविष्य के निर्माता बने। शिक्षा जगत के साथ-साथ साहित्य जगत में भी अपनी प्रखर लेखनी से क्रान्ति उत्पन्न करते रहे।

     महाकाव्य की कुछ विशेषता अवश्य होनी चाहिए, इस महाकाव्य की अपनी विशेषताएँ हैं, जो इसे महाकाव्य का दर्जा देता है। महाभारत जैसे कथा इतिहास प्रसिद्ध होनी चहिए या इसका नायक उदात्त चरित्रवाला, इसमें मानव जीवन की विशद व्याख्या होनी चाहिए। साथ कम से कम आठ सर्ग अनिवार्य रुप से होना चहिए। यह महाकाव्य इन सारी विशेषता को पूर्ण करता है। महाभारत के पात्रों पर आधारित आज के समय में महाकाव्य लिखना आसान काम नहीं है । ‘राई’ जी ने प्राचीन मिथको को तोड़ नया इतिहास लिखा है। उन्होंने रुढ़िवाद को नहीं माना। उनकी संवेदना नारी के प्रति मुखरित हो उठती, भरी सभा में भीष्म जैसा योद्धा, विदूर जैसे परामर्शदाता, कृपाचार्य एवं द्रोणाचार्य जैसे ज्ञानी के रहते और भरी सभा में एक नारी को निर्वसन करना आज तक जन-जन को बेधता है। इसलिए महाकवि कहता है –

कैसा पाखंड!

कैसी गर्वोक्ति!

कर्ता होकर भी

भोक्ता बनकर भी

बच निकलता है

उन्नत मस्तक चलता है।

(प्रथम सर्ग)

     और नारी जिसे निर्दोष होते हुए भी दोनों तरफ से झेलना पड़ता है। अहिल्या शापित हुई उसका क्या दोष था? जिसे शापित होना चाहिए वह राजा बना, जो निर्दोष है उसे पत्थर बनना पड़ा। वाह रे नियति। कविवर के शब्दों मे-

कैसी दुधारी चाल

हर हालत में

सहना पड़े

नारी को

लोकापवाद

रहना पड़े

प्रतीक्षा में

चरण-रज-स्पर्श की

बनकर जड़ पाषाण!

(प्रथम सर्ग)

     नारीयों में द्रोपदी कमजोर नहीं है। वह राजकुल की सुख सुविधा में पली-बढ़ी राजकुल में ब्याही फिर भी वन-वन पाँचों पतियों के सुख दुख की साथी बनी रही अन्याय चुपचाप सही नहीं बल्कि उसका विद्रोह की। स्वयं अपने अपमान का बदला ली भले ही इस क्रम में पूरा वंश का नाश हो गया किन्तु वह अपने साथ हुए अन्याय को नहीं भूली। कवि कहता है-

“मैं वस्तु नहीं

स्वतंत्र शक्ति हूँ,

एक व्यक्ति हूँ।

किसने दिया धर्मराज को

अधर्माधिकार?

पराजित प्रजापति

लगा न सकता कभी

दाँव पर अपनी स्त्री।

फिर तुम कौन?

क्यों करते अंधत्व-वहन?

उतार कर किसी स्त्री का चीर

कभी न कहला सकते प्रवीर।

(अठारह सर्ग)

भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे । महाभारत के योद्धाओं का वर्णन आता है तो भीष्म पितामह का नाम आता है। उनके लिए कवि कहता है-

वंशवृद्धि निमित्त

तथाकथित पराक्रम-कुफल

अंबा को भोगना पड़ा

नियोग-नयास

महामुनि व्यास

रुग्ण रत्नों का जन्मदाता।

जीतकर

स्वयंवर में

स्वयं वरण न करना

क्या सूचित करता है?

सौंपना सुकन्याओं को

कापुरूषों को

क्या व्यंजित करता है?

(सर्ग अठारह)

          कवि सभी पात्रों को निष्पक्ष ढंग से चरित्र चित्रण करता है विदूर को ज्ञानी एवं नीति निपुण कहा गया है। चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था। युद्धिष्ठीर सत्य के राह पर है पर उसे खुलकर साथ नहीं दे पा रहा था। कवि कहता है-

खंड व्यक्तित्व

द्विधाग्रस्तता

कैसे चलता राज

होता विकास

बँटी हो जब निष्ठा?

संस्कार ओछा

सवर्दा सिद्ध किया।

क्या किसी को

परान्न ऐसे

देता मार

ढाता बनकर कहर

स्ववर्गीय पर

जानकर भी जन्मकथा?

 (सर्ग अठारह)

     दुर्योधन का चरित्र भले ही कलंकित हो किन्तु कर्ण को अंग का राजा बनाकर समतावादी राजपुरुष के श्रेणी में आया। कर्ण को राजगद्दी देने के पीछे उसका निहीत स्वार्थ था, कर्ण का निम्नकुल का होने में उसका क्या दोष था? उसे अपमान का दंश बारम्बार झेलना पड़ा। अखिर क्यों? रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के “रश्मिरथि” में भी कर्ण अपनी जाति पूछे जाने पर क्रोधित हो कह उठता है-

'जाति! हाय री जाति !' कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला,

कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला

'जाति-जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल पाषंड,

मैं क्या जानूँ जाति ? जाति हैं ये मेरे भुजदंड।


'ऊपर सिर पर कनक-छत्र, भीतर काले-के-काले,

शरमाते हैं नहीं जगत् में जाति पूछनेवाले।

सूत्रपुत्र हूँ मैं, लेकिन थे पिता पार्थ के कौन?

साहस हो तो कहो, ग्लानि से रह जाओ मत मौन।

     वही ‘राई’ जी कह उठते हैं-

आज तक

दूसरा कर्ण

नहीं आ सका

ऐंद्र को ललकारने

समाज को झकझोरने

रूढ़ियों को तोड़ने

परंपरा पार करने

अंधविश्वास विनाश करने

जो

खोलकर

हमारी दृष्टि

उतारकर

बड़प्पन का लबादा

और कहता—

यहाँ नेपथ्य में

क्या हो रहा है?

(सर्ग छह)

     कवि शिक्षक रहे हैं, शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे व्यवसायिकता से पूरी तरह वाकिफ थे। कवि के शब्दों में

ज्ञान नपता है तुला पर और विद्या बिकती बाज़ार में

मेधा बेमोल रह जाती है आज यहाँ इस संसार में।।

     इतना ही नहीं कवि आज की स्थिति जहाँ प्रतिभा बाधित मरी रहती । अपनी डिग्री या विलक्षणता लिए नवयुवक को भटकना पड़ता है चाहे कर्ण हो या द्रोण। कवि के शब्दों में-

     रोज़ी-रोटी को भटक रहे अनगिनत नवयुवक प्रतिभावान्

    चाहे धनुर्धारी कर्ण हो चाहे मेधावी द्रोण महान्।।

(सर्ग चौदह)

     कवि श्रम के महत्व को स्वीकार करते हुए कहता है-

बहाकर श्रमिक श्रमसीकर अभिसींचता वसुंधरा।

उष्ण रूधिर वर दाना बनकर जन-जन को पालता।।

                                                                                 (सर्ग तेरह)

    साथ ही कर्म सदा सर्वसुन्दर है। कवि शब्दों में-

श्रम सदा सर्वसुंदर रहा, शिवं सुजीवन दाता।

श्रमिक कब निज सत्य समर का मूल्य कभी निकालता?

(सर्ग तेरह)

      कवि प्रेम को अमूल्य रतन मानते हैं-

प्रेम संबंध पावन

एक संर्पूण समर्पण

उच्चतम उत्सर्जन

भव्य भावनात्मक बंधन

जीवनोर्जा समपन्न

मनभावन सबका

अमूल्य रतन भुवन का।

(तृतीय सर्ग)

     द्वापर गाथा सामंती व्यवस्था में छिपे मठाधीशों के चरित्र की कमजोरी, खोखलेपन, सत्ता के आड़ में चारित्रिक पतन पर अपनी प्रवीण लेखनी की धार से वार किया है। अंतिम पंक्तियाँ तो संपूर्ण द्वापर गाथा का सार है-

राजा होना

बड़ी बात है

बडा होना

सबकुछ नहीं।

संपन्नता से क्या होता

बगल विपन्नता बिलख रही?

शक्ति सुरक्षा देकर ही

सचमुच होती शक्ति

व्यक्ति सरल होकर ही

पा सकता है भक्ति।

कोई कुछ न रहे तब भी

कुछ अंतर न आता कोई

आवश्यकता आज इतनी ही

कि आदमी रहे आदमी।

     ध्रुव नारायण सिंह राई की “द्वापर गाथा” महाकाव्य एक अच्छी कृति है, जब लेखक जीवित थे तो “द्वापर गाथा” मुझे उपहार दिये थे और इसके बारे में लिखने के लिए कहे, किन्तु मैं लिख नहीं पाई। उनके सुपुत्र आलोक राई ने इस पुस्तक की द्वितीय संस्करण दिए और बड़े प्रेम से लिखने के बारे में कहा। मैं आलोक का प्यार भरा अनुरोध अस्वीकार नहीं कर सकी। यह पुस्तक कोसी अंचल की ही नहीं पूरे राष्ट्र की धरोहर है। छोटे से कस्बे का एक कवि “द्वापर गाथा” महाकाव्य लिखता है, यह उनके अदभूत काव्य प्रतिभा का द्योतक है, पाठकीय संवेदना को झकझोरने में पूर्णतः सक्षम है। सही कहा गया है कवि समाज का सच्चा फोटोग्राफर होता है, जिनकी कलम सत्य लिखने से पीछे नहीं हटती। अंत में इस महाकाव्य के लिए महाकवि को हृदय से बधाई और शुभकामनाएँ देती हूँ।


समीक्षक 

डॉ. अलका वर्मा

त्रिवेणीगंज, जिला- सुपौल, 

बिहार, 852139

मो. — 7631307900


पुस्तक का नाम- “द्वापर गाथा” महाकाव्य

रचनाकार का नाम- श्री ध्रुव नारायण सिंह राई

प्रथम संस्करण- 2012 माधविका प्रकाशन

द्वितीय संस्करण- 2022 स्वराज प्रकाशन,    

                          दरियागंज, दिल्ली 

                          मूल्य- 200/- 


डॉ. अलका वर्मा जी की कुछ पुस्तकों के छायाचित्र


कही-अनकही
अलका वर्मा

समकालीन मैथिली कविता मे
प्रगतिवादी चेतना
 डॉ. अलका वर्मा 

एक मुट्ठी इजोर
डॉ. अलका वर्मा


गुलमोहर
डॉ. अलका वर्मा 

एक टीस
डॉ. अलका वर्मा 

आओ बच्चों देखो फूल 
बाल कविता संग्रह
डॉ. अलका वर्मा


डॉ. अलका वर्मा
मुझे मेरे नाम से पुकारो


दर्द गहराता बहुत है
डॉ. अलका वर्मा


🔗
कुछ तेरी कुछ मेरी बात

डॉ. अलका वर्मा




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आप कहाँ चले गए महाकवि! -विष्णु एस राई 

‘द्वापर गाथा’ महाकाव्य का काव्य-प्रसंग - डॉ. विनय कुमार चौधरी

समकालीन युगधर्म से सम्पन्न एक काव्य-कृति /पुस्तक समीक्षा “द्वापर गाथा” महाकाव्य -डॉ. धर्मचन्द्र विद्यालंकार


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डॉ. अलका वर्मा 

ध्रुव नारायण सिंह राई जी की कविता अभाव 





Tuesday, November 1, 2022

'Face of The Mirror' Dhruva Narayan Singh Rai book introduction by Bharat Prasad 'Bhushan'

         Here I am presenting 'Face of The Mirror' Author : Dhruva Narayan Singh Rai book introduction by Bharat Prasad 'Bhushan', H.O.D. Eng. Depth., L. N. Science College, Triveniganj, Supaul (Bihar), this introduction part is within the book. In this sands of time a novel named 'A Tireless Traveller' will be soon in Publication by Bharat Prasad 'Bhushan'. 

              As the book name is sure to view 'Face of The Mirror' the different shades of face in this world as we can say a mirror. I think mirror represents self outer and covered inner view. Its several copies sold and gone popular, I shall try in upcoming years to reprint this. Thanks and hope for love and blessings from you all.                                                                                    Er. Alok Rai                                                              email: raialok6@gmail.com

 

 

Introduction

of 'Face of The Mirror'

     The variety of topics Mr. Dhruva Narayan Singh Rai has selected for the subjects of his essays is an innovation and a great contribution to fulfil a long-felt need of such philosophical, political, educational and social essays in this genre. Though mighty minds have aimed at and added something to this field yet the different aspects that Mr. Rai has treated single him out from the row and rank of conventional types of essays. It's true the so-called father of English essay Mr. Bacon, too, strove hard to enrich this genre. But his appurtenances are confined to the field of literature and don't serve the purpose of common readers. So far as Rai has dealt with the subjects are undoubtedly novel and speak themselves of self intuition and the philosophical view of life and his deep study of human behaviour. In fact, these are the outcomes of his personal understandings and angle of vision for the implementation in life for all and sundry who are out themselves groping in the dark for an unknown destination where all aspirations end and man remains stranded without any source.

     In respect of the information Mr. Rai has gathered can be classified in four categories such as personal and philosophical, political, social and educational. The introduction of  respective categories of  the essays will acquaint us with the rules of grammar and the use of words he has interwoven  his thoughts in the rosy bud for the feast of inquisitive minds. The first category of essays such as 'Face of The Mirror', 'Pitfalls', 'The old,  An unwasted Treasure' along with essays 'The Building Up' are the treasures of knowledge the to unlock and get rid of the disappointment for those who have been victims of procrastination and lag behind in the race of life on accout of wrong decesions either in hibernation or in hot haste. In this connection we can enjoy his first essays 'Face of The Mirror' which points out our folly and like the great saint Kabira instructs us to find out everything within or without diverting our attention to to outer world. Truly speaking it is the deeds that justify the success or failure of man. Again the essay 'The Building up' guides our way to learn ourselves what we are? The assertion of  Mr. Rai that no single and simple way can be ascribed for the achievements of destination in life instructs us to reckon ourselves what we are? The assertion of Mr. Rai that no single and simple way can be ascribed for the achievements of destination in life instructs us reckon ourselves. The essay like 'Pitfalls' reminds us of the proverb 'As you sow, so you shall reap' in fact, hatred breeds hatred together with faul intrigues involving the weaver itself. The most striking subject Mr. Rai has attempted at gives consolation to The Old who are often connived at by the spirited youngs out of ignorance and lack of study of human behaviour. It's true the old are the unwasted treasure of  knowledge and experience whose association can change the course of our life particularly in the hour when the youngs are baffled with a number of problems in life. Though generally kept aloof and unheard, the old are the springheads of knowledge and experience of a long journey of life,

The sincere efforts that Mr. Rai had made in presenting before us the essay with the epithet 'Humanity Undivided' calls for our attention to the need of universal brotherhood and fraternity. He has rightly retorted and refuted the unhuman division of man with the pronouncement 'East is east and west is west, the twain can never meet.' In fact, Mr. Rai takes us to the origin of man and comes with a message 'Humanity Undivided.' It is a revelation to the humanity which has shrunk in size and concept because of the selfish motive of the rulers. In addition the essay with the title 'Politics, A Fair Play' guards the politicians against the danger of using faul means in politics, Infact, Mr. Rai has brought to light that it is the politicians who have put the board upside down in order to serve their vested interest at the cost of the innocent common mass round the globes. Mr. Rai has shown his sympathy to the ignored down-trodden fair sex who have been made foul. Though many treatises have been framed and thereby many changes come in the society yet the fate of the fair-sex remained the same. So all the ways and means to uplift women from their mooring status have proved 'A cry In the Wilderness.' As a matter of fact even today the women are nothing but toys to play with for the appeasement of man's physical instincts. Mr. Rai has taken into account the helpless condition of women in general and that of the windows in particular who have remained to be the food for the wolves and the debauchees of the society. Though born and bought up in the same family women have got no recognition in society who can change the course of man's life and bring heaven on this earth. Mr. Rai doesn't tire in giving a new hope when he calls upon them to 'Come Forward' and share the common wealth and occupy a place of honour and dignity in the world. Mr. Rai infuses in them the spirit of self respect.

Lastly the judicious and unbiased outlook of Mr. Rai and his wailing for the ugly scene in the field of education is most striking to our attention. As a true teacher he remains to be a judge and honestly holds the trinity. The teachers, the guardians as well as politicians and the officials are equally responsible to spoil the sanctity of education. In fact he doesn't spare the triangle to lash for their misunderstanding and false idea which make the coming generation a prey to indiscipline. To sum up that all the essays show the efforts of a well read man who has artistically dealt with a variety of subjects and here lies the ability of Mr. Rai as a superb essayist.

Bharat Prasad 'Bhushan'
Head of the Department English
L. N. Science College, Triveniganj,
  Supaul (Bihar)










Face of The Mirror
Dhruva Narayan Singh Rai







Purls of Emotions (Poetry collection)
Dr. Anupam kumar













  Purls of Emotions (Poetry collection)  by Dr. Anupam Kumar in this book you can enjoy poetry of Bharat Prasad 'Bhushan'. A good talk is that book is available in Amazon.

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