ग़ज़ल सम्राट ध्रुव नारायण सिंह राई |
ये हसीं हँसी गर मिली है मुझको
ये
हसीं हँसी गर मिली है मुझको
सब
तेरी मेहरबानी है समझो
वर्ना
कौन होता मेरे ग़म का क़द्रदाँ
सबकी
अपनी परीशानी है समझो
जहाँ
रिश्ता टिका हो लेन-देन पर
वह
रिश्ता भी कैसा इंसानी समझो
बेक़रार
दिल कुछ कहे भी तो क्या
रोना-धोना
कितना बेमानी समझो
बदल
बदल रही बराबर फ़जा
इक
उम्मीद पे फिरता पानी समझो
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