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🔗 द्वापर गाथा (महाकाव्य) ध्रुव नारायण सिंह राई |
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ई. आलोक राई शिक्षा- बी.टेक. इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक, बी.एड. |
मत भूलो रे मनवा
(प्रेरणाश्रोत- महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई)
यादों में
अश्रु आये
आवाज भी
अन्दर रह जाये
ख्यालों में वो लम्हा
जब आये
अक्समात जब ऐसे कोई जाये
अवाक रह
सब सुन्न पड़ जाये
और कुछ कर न पाये
अब उनकी बातें याद आये
मेरे पिता
मेरे शिक्षक, मेरे मित्र
हर रिस्ते मेरे उनसे रहे
मेरे नम आँखों में
उनके लिए सदा प्यार है
फिर कभी किसी जन्म में
मुझे उनके साथ का इंतजार है
पहले जब मैं छोटा था
पापा ले जाते थे कवि सम्मेलनों में
बाल कवि बन मैं सुनाता था कविता
समय बितता गया
मैं शिक्षा के लिए बाहर रहा
छुट गयी मेरी कविता लेखनी
अब फिर मेरे अंदर
पिता “महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई”
की स्मृतियों से कविताए
आ रही हैं
मैं
पलट रहा हूँ
खोज रहा हूँ
देख रहा हूँ
उनकी वो सारे पन्ने
वे “गजल सम्राट”
जिनकी ढ़ेर सारी गजले
ऐहसास दिला रही
सफर ए जिंदगी का
अनुभव करा रही
जिंदगी के हर पहलुओं का
“राई” न रहे बेवश
मुश्किलों के सामने
“द्वापर गाथा” महाकाव्य
के विभिन्न प्रसंगों को निहार रहा हूँ
समझ रहा हूँ
“महाकाव्य” में लिखे
अंतिम शांति संदेश को
समझ रहा हूँ मैं
उस एकलव्य को
जो हर कमी से जुझ
बड़े प्रतिभा के धनी बने
जो है
“अँगूठा बोलता है” खण्डकाव्य
कई गीत, भजन को
मैं देख रहा हूँ
पत्रिकाओं की कृतिया पढ़ रहा हूँ
संकलनों में आये उनके
कृतियों को ध्यान दे रहा हूँ
सरस्वती बंदना उनकी मैं
गायन कर रहा हूँ
उनकी बाल सखी “चिलौनी नदी”
के पास से गुजरता रोज
उस कर्म धनी
के स्मरण से
खुद में उर्जा भरता
उस ध्रुव पथ पर
चलना चाह रहा हूँ
जिस पथ पर वो चले
शुक्रिया कर रहा हूँ
उनके साथ का
उनके सभी साथियों का
उनसे जुड़े सभी लोगों का
वो नैया थे मेरे
मैं था पतवार
हर डगर पर उनका था मुझपर
प्रेम बेसुमार
यादों के लम्हों में
डूब जाता हूँ
खुद को अकेला पाता हूँ
मत भूलो रे मनवा
मत भूलो
बाते उनकी मूझे आपको
याद दिलानी
इस बात को मुझे
फिर से है दोहरानी..........................
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(प्रेरणाश्रोत- महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई)
यादों में
अश्रु आये
आवाज भी
अन्दर रह जाये
ख्यालों में वो लम्हा
जब आये
अक्समात जब ऐसे कोई जाये
अवाक रह
सब सुन्न पड़ जाये
और कुछ कर न पाये
अब उनकी बातें याद आये
मेरे पिता
मेरे शिक्षक, मेरे मित्र
हर रिस्ते मेरे उनसे रहे
मेरे नम आँखों में
उनके लिए सदा प्यार है
फिर कभी किसी जन्म में
मुझे उनके साथ का इंतजार है
पहले जब मैं छोटा था
पापा ले जाते थे कवि सम्मेलनों में
बाल कवि बन मैं सुनाता था कविता
समय बितता गया
मैं शिक्षा के लिए बाहर रहा
छुट गयी मेरी कविता लेखनी
अब फिर मेरे अंदर
पिता “महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई”
की स्मृतियों से कविताए
आ रही हैं
मैं
पलट रहा हूँ
खोज रहा हूँ
देख रहा हूँ
उनकी वो सारे पन्ने
वे “गजल सम्राट”
जिनकी ढ़ेर सारी गजले
ऐहसास दिला रही
सफर ए जिंदगी का
अनुभव करा रही
जिंदगी के हर पहलुओं का
“राई” न रहे बेवश
मुश्किलों के सामने
“द्वापर गाथा” महाकाव्य
के विभिन्न प्रसंगों को निहार रहा हूँ
समझ रहा हूँ
“महाकाव्य” में लिखे
अंतिम शांति संदेश को
समझ रहा हूँ मैं
उस एकलव्य को
जो हर कमी से जुझ
बड़े प्रतिभा के धनी बने
जो है
“अँगूठा बोलता है” खण्डकाव्य
कई गीत, भजन को
मैं देख रहा हूँ
पत्रिकाओं की कृतिया पढ़ रहा हूँ
संकलनों में आये उनके
कृतियों को ध्यान दे रहा हूँ
सरस्वती बंदना उनकी मैं
गायन कर रहा हूँ
उनकी बाल सखी “चिलौनी नदी”
के पास से गुजरता रोज
उस कर्म धनी
के स्मरण से
खुद में उर्जा भरता
उस ध्रुव पथ पर
चलना चाह रहा हूँ
जिस पथ पर वो चले
शुक्रिया कर रहा हूँ
उनके साथ का
उनके सभी साथियों का
उनसे जुड़े सभी लोगों का
वो नैया थे मेरे
मैं था पतवार
हर डगर पर उनका था मुझपर
प्रेम बेसुमार
यादों के लम्हों में
डूब जाता हूँ
खुद को अकेला पाता हूँ
मत भूलो रे मनवा
मत भूलो
बाते उनकी मूझे आपको
याद दिलानी
इस बात को मुझे
फिर से है दोहरानी
अश्रु आये
आवाज भी
अन्दर रह जाये
ख्यालों में वो लम्हा
जब आये
अक्समात जब ऐसे कोई जाये
अवाक रह
सब सुन्न पड़ जाये
और कुछ कर न पाये
अब उनकी बातें याद आये
मेरे पिता
मेरे शिक्षक, मेरे मित्र
हर रिस्ते मेरे उनसे रहे
मेरे नम आँखों में
उनके लिए सदा प्यार है
फिर कभी किसी जन्म में
मुझे उनके साथ का इंतजार है
पहले जब मैं छोटा था
पापा ले जाते थे कवि सम्मेलनों में
बाल कवि बन मैं सुनाता था कविता
समय बितता गया
मैं शिक्षा के लिए बाहर रहा
छुट गयी मेरी कविता लेखनी
अब फिर मेरे अंदर
पिता “महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई”
की स्मृतियों से कविताए
आ रही हैं
मैं
पलट रहा हूँ
खोज रहा हूँ
देख रहा हूँ
उनकी वो सारे पन्ने
वे “गजल सम्राट”
जिनकी ढ़ेर सारी गजले
ऐहसास दिला रही
सफर ए जिंदगी का
अनुभव करा रही
जिंदगी के हर पहलुओं का
“राई” न रहे बेवश
मुश्किलों के सामने
“द्वापर गाथा” महाकाव्य
के विभिन्न प्रसंगों को निहार रहा हूँ
समझ रहा हूँ
“महाकाव्य” में लिखे
अंतिम शांति संदेश को
समझ रहा हूँ मैं
उस एकलव्य को
जो हर कमी से जुझ
बड़े प्रतिभा के धनी बने
जो है
“अँगूठा बोलता है” खण्डकाव्य
कई गीत, भजन को
मैं देख रहा हूँ
पत्रिकाओं की कृतिया पढ़ रहा हूँ
संकलनों में आये उनके
कृतियों को ध्यान दे रहा हूँ
सरस्वती बंदना उनकी मैं
गायन कर रहा हूँ
उनकी बाल सखी “चिलौनी नदी”
के पास से गुजरता रोज
उस कर्म धनी
के स्मरण से
खुद में उर्जा भरता
उस ध्रुव पथ पर
चलना चाह रहा हूँ
जिस पथ पर वो चले
शुक्रिया कर रहा हूँ
उनके साथ का
उनके सभी साथियों का
उनसे जुड़े सभी लोगों का
वो नैया थे मेरे
मैं था पतवार
हर डगर पर उनका था मुझपर
प्रेम बेसुमार
यादों के लम्हों में
डूब जाता हूँ
खुद को अकेला पाता हूँ
मत भूलो रे मनवा
मत भूलो
बाते उनकी मूझे आपको
याद दिलानी
इस बात को मुझे
फिर से है दोहरानी
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