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Wednesday, August 31, 2022

आप कहाँ चले गए महाकवि! -विष्णु एस राई

 

विष्णु एस राई

एम. ए. (अंग्रेजी) टी. यु. काठमाण्डू, नेपाल

एम. एड. (गोल्ड मेडलिस्ट) टी. यु. काठमाण्डू, नेपाल

एम. ए. (टीसोल) इडनवर्ग यूनिवर्सिटी, यू. के.

पीएच. डी. वेर्न युनिवर्सिटी, स्विटजरलैण्ड

पोस्ट पीएच. डी युनिवर्सिटी ऑफ वियना, आस्ट्रेलिया

प्रोफेसर- डिपार्टमेन्ट आफ इंग्लिश एडूकेशन, टी. यू.

गेस्ट/विजिटिंग प्रोफेसर- डिपार्टमेन्ट ऑफ एशियन स्टडिज, युनिवर्सिटी ऑफ वियना, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, हंगरी आदि ।


आप कहाँ चले गए महाकवि!
                                        -विष्णु एस राई 


ध्रुव नारायण सिंह राई

हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती  है
बडी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा (१)

लोग कहते हैं महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई हमारे बीच नहीं रहे। पर क्या ये सच है? क्या वे सचमुच सदा सर्वदा के लिए चले गए हैं हमें छोड कर? शायद हाँ, शायद नहीं। सच तो ये है कि वे हमारे सामने नहीं हैं – हमारे दिलों में हैं। उनका पार्थिव शरीर नहीं रहा पर उनका अपार्थिव स्तित्व हमारे साथ है।  उनके जैसे लोग कभी नहीं मरते, हमेशा जिन्दा रहते हैं उनके अपने सुकर्मों में, रचनाओं में, यादों में। जीवित रहते हैं वेहमारे लिए दुख में ढाढस और विपत्ति में प्रेरणाश्रोत बनकर।
आज जब मैं उनके सम्बन्ध में लिखने बैठा हूँ तो समझ नहीं पाता कि कहाँ से कैसे शुरू करूं। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का सही आकलन और उन्हें समुचित ढंग से प्रस्तुत करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। साहित्य, शिक्षा, समाजसेवा, रंगमञ्च, दंगल, अभिनय– लंबी है उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के विभिन्न रंग और इनसभी में क्षेत्रो में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोडी है। उनका दंगल प्रेम हमें कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की याद दिलाता है। निराला कवि होने से पहले दंगल में अपना कौशल दिखाते थे और कविताको अपनाया तो महाकवि बने: ध्रुवजी भी प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दंगल में प्रतिद्वन्द्वी को पलभर में पछाड देते थे और जब कविता के आकाश में ध्रुव तारा बन कर उगे तो महाकवि बनकर जगमगाए। उन्हीं जैसों के लिए कहा गया है,

जहाँ में अहले इमान खुर्शीद जीते हैं
इधर डूबे, उधर निकले; उधर डूबे, इधर निकले (२)

वो दिन था १५ जनवरी, १९५४ जिस दिन निपनियाँ गावँ में बालक ध्रुव ने पहली बार इस संसार में अपनी आँखें खोली  १६ सद्स्यों के सम्मिलित परिवार में लालन-पालन हुआ। गावँ की मिट्टी में पले बढे, उसी के धूल में कुश्ती लड़ना और गावँ के पश्चिम से बहनेबाली नदी चिलौनी की धाराओं मे तैरना सीखा – बाद में उस नदी को 'मेरी प्रेयसी चिलौनी' शीर्षक कविता में अमर कर दिया। विहार की पावन धरती सदा से प्रतिभाओं के लिए उर्वरा रही है –मण्डन मिश्र और उनकी पत्नी भारती जिन्होंने जगदगुरु श्री शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में हराया, भारत रत्न डा. राजेन्द्रप्रसाद जो स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति हुए, भारत रत्न बिस्मिल्लाह खाँ जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत और शहनाइ को विश्व-संगीत में अमर कर दिया, महाकवि रामधारी सिंह दिनकर जो भारत के राष्ट्रकवि रहे, फनीश्वरनाथ रेणु जिन्हें आंचलिक कथाकारों का सिरमौर माना जाता है, सूची लम्बी है और इस सूची में अब जुड गया है एक नाम और  आप जानते हैं मैं किनकी बात कर रहा हूँ। मैं बात कर रहा हूँ महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई की जिन्होने अपने खण्डकाव्य 'अंगूठा बोलता है' और महाकाव्य 'द्वापर गाथा' की सृजना करके साहित्यका नया मापदण्ड प्रस्तुत किया है। 

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं (अ) अंगूठा बोलता है (खण्डकाव्य), (आ) द्वापरगाथा (महाकाव्य), (इ) टुकड़ा- टुकड़ा सच (कविता संग्रह), (ई) Face of the mirror (essays). सम्पादित कृतियाँ हैं, महेन्द्र नारायण पंकज के साथ (क) निराला: व्यक्ति और साहित्य, Vishnu S Rai और Avijeet R Das के साथ (ख) Flying with words (stories), और प्रधान सम्पादक (ग) चौरासी पत्रिका जर्नल अव मिनी खम्बुवान। इसके अतिरिक्त जन-तरंग, जन आंकक्षा, क्षणदा, लहक, परती- पलार, संकल्प, ऋचा, प्रसन्न राघव निर्भिक एवं राष्ट्रिय निष्पक्ष साप्ताहिक, शम्बूक मासिक, विप्र पंचायत, तरूनोदय, वैश्यवसुधा, विचारदृष्टि, भाग्य दर्पण, भारतवाणी, शब्द कारखाना, प्राच्य प्रभा, नई गजल (त्रैमासिक), आदि पत्र-पत्रिकाओं में फुटकर रचनाएं, कविताएँ, लेख, गजलें, समालोचना आदि प्रकाशित हैं। उसी तरह विभिन्न पुस्तकें जिनमे उनकी रचनाओं ने स्थान प्राप्त किया है उनमें से कुछ के नाम हैं, अखिल भारतीय साहित्य संग्रह २००७ और २०१०, कोशी अन्चल की लघु कथाएँ, देशी विदेशी कवि कवित्रियाँ, पूरब-पश्चिम, विश्वांचल, शून्य से शिखर तक, देश-प्रदेश, स्त्री विमर्श: समकालीन कविता का नया आयाम, सदी की पार की गजलें, आदि। उनकी प्रकाशोन्मुख पुस्तकों की कतार जैसे, एहसास ए सफर(गजल), आईना ए हकीकत(गजल), ऋतुरंग (समयगीत), अनुगुन्ज(भक्तिगीत), तानपूरा (कहानी संग्रह), आदि भी लम्बी है जिन्हें बकौल उनके सुपुत्र श्री आलोक राई हम शीघ्र ही देख, पढ और आनन्द ले पाएँगे ।

उनकी रचनाओं की तरह उनको दिए गए सम्मान की सूची भी लम्बी है: उनकी काव्य क्षमता की प्रशंशा में कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, गजलों में नई मिसाल कायम करने के लिए गजल सम्राट (हिन्दी विकास सेवा संस्थान कुशीनगर, उत्तर प्रदेश), उनकी अपार काव्य-शक्ति के लिए बिहार काव्य रत्न (अखिल भारतीय कला सम्मान परिषद), राष्ट्रभाषा हिन्दी की अक्षुण्णसेवा के लिए राष्ट्रभाषा आचार्य (हिन्दी विकास सेवा संस्थान), साहित्यिक योगदान के लिए न्यु ऋतम्भरा साहित्य मणि सम्मान (छत्तीसगढ), काव्य का गौरव बढाने के लिए काव्य गौरव सम्मान, साहित्य कमल सम्मान, अप्रतिम साहित्य सेवा के लिए देवभूमि साहित्य रत्न (पिथौरागढ़), भारत के गौरव योग्य होने के लिए भारत गौरव सम्मान (मध्य प्रदेश), और साहित्य में सत्य की निरन्तर पूजा के लिए साहित्य सत्यम (अररिया) आदि। मुझे याद आता है वाल्मिकी रामायण का वो श्लोक जो ध्रुव जी जैसे हस्ती के लिए कहा गया है,

उभाभ्यामेव पक्षाभ्यां यथा खे पक्षिणां गति:
तथैव ज्ञान कर्माभ्यां जायते परमं पदम् (३)

जिस तरह आकास में उडने वाला पक्षी अपने दोनों पंखों को सन्तुलन में रख कर उड़ता है ठीक उसी प्रकार ज्ञान और कर्म के सन्तुलन को कायम रख कर मनुष्य महान बनता  है – वो एक ऐसे ही महान इन्सान थे।

ज्ञान और कर्म को सन्तुलन में रखनेवाले, अपना रास्ता आप बनानेवाले इस बेहतरीन इन्सान को बाधाओं ने कभी निराश नहीं किया। विपत्तियाँ उन्हें कभी तोड न सकी, समस्याएं कभी विमुख नहीं कर सकी उन्हें सपनें देखने से– और जोसपने देखता है जीवन में वही कुछ कर सकता है। और ध्रुव तो गावँ मे पले बढे थे सपनों को जीना उन्हें आता था।

ख्वाब की गावँ में पले हैं हम-
पानी छलनी में ले चले हैं हम (४)

वो भीड में वो चेहरा थे जो कभी किसी का मुहताज नहीं रहा। सही रास्ते पे किसी ने साथ नहीं दिया तो 'एकला चोलो रे' के सिद्धान्त पर अकेले चलने में कभी हिचकिचाए नहीं और लोग खुद उनके पीछे आए – 

मैं अकेला ही चला था जानिबे मन्जिल मगर
लोग आते गए और कारवां बनता गया (५)

एक अध्यापक के रुप में सारा स्थानीय समुदाय उन्हें 'मास्टर साब' के नाम से जानता था। वे साधारण जन में बहुत लोकप्रिय थे। विद्यार्थी उन्हें प्रेम करते थे और सहकर्मी उनके जैसे बन पाने की इच्छा। त्रिवेनीगंज में बहनेवाली हवाएँ भी उन्हें जानती थी। मुझे अच्छी तरह याद है वो दिन जिसने मुझे बताया कि वो अपने शिष्यों में कितने लोकप्रिय थे, उनलोगों की जिन्दगी में मास्टर साब ने कितनी अहम भूमिका अदा की थी। घटना २०२० की है। दि इंग्लिश एण्ड फरेन ल्यांगवेजिज युनिवर्सिटी, हैदराबाद ने मुझे राइटिंग वर्कशप में फेसिलिटेटर के रुप में आमन्त्रित किया और चूंकि मास्टर साब भी उसमें शिरकत करनेवाले थे सो हम दोनों साथ चले। मेरे आवास और भोजन की व्यवस्था युनिवर्सिटी ने की थी पर ट्रेन ने हमें वर्कशप से एक दिन पहले पहुँचा दिया। मैं एक रात के लिए किसी होटेल में रुक जाता लेकिन मास्टर साब का एक छात्र वहीं हैदराबाद में रहता था जिसने हमें बडे आदर-सम्मान के साथ रखा। मध्य रात के एक बजे वो हमें हैदराबाद स्टेशन पर लेने आया। जैसे हीं हम स्टेशन से बाहर निकले एक ३० वर्ष के सुदर्शन जवान ने आकर ठक से मास्टर साब के पैरों की धूल ली, ट्याक्सी में अपने डेरे ले गया, मेरे लाख मना करने  के बाबजूद भी उतनी रात गए खाना बनबा के खिलाया। मैं तो दूसरी सुबह युनिवार्सिटि चला गया पर उसने अपने गुरुदेव को एक सप्ताह अपने साथ रखा और मास्टर साब युनिवार्सिटी के वर्कशप में वहीं से आते जाते रहे। आज के जमाने में कौन छात्र किसी गुरू के पैर छूता है?, किसी अनजान शहर में अपना काम धन्दा छोड कर रात के एक बजे उन्हेंलेने चार मील दूर स्टेशन जाता है?, और एक सप्ताह अपने घर पर रखता है? इस अति भौतिकवादी समय में भी ध्रुव नारायण जी के छात्र ऐसा करते हैं। वो क्यों ऐसा करते हैं? वो ऐसा करते हैं इसलिए क्योंकि उनके हृदय में मास्टर साब के लिए अपार आदर और प्रेम है। अपने छात्रों द्वारा ऐसा सम्मान केवल गिनेचुने शिक्षकों को ही मिलता है।

सब धरती कागद करूं, लेखन सब वनराय
सात समुद्र की मसी करूं गुरू गुण लिखा न जाय (६)

ध्रुव जी एक ऐसे ही गुरू, एक ऐसे ही शिक्षक थे।

सन २००९ में मास्टर साब जेनरल हाइस्कूल त्रिवेणीगंज के प्रधानाध्यापक बने और सेवानिवृत होने तक (२०१४) कुशलतापूर्वक विद्यालय-संचालन किया। उनकी इन्हीं कार्य कुशलता को ध्यान मे रख कर उन्हें १० हाइस्कूलों का डी.डी.ओ. भी नियुक्त किया गया। एक दक्ष शिक्षक के रुप में उनकी ख्याति की खुशबू दूर-दूर तक फैल चुकी थी। इसी के परिणाम स्वरूप ब्रिटिश काउन्सिल ने उनका चयन शिक्षक-प्रशिक्षक के रुप में किया और वहाँ भी प्रशिक्षकों और सहकर्मियों ने उनके ज्ञान और शिक्षण-कौशल का लोहा माना। कहते हैं कि प्रशिक्षण के दौरान एक प्रशिक्षक महोदय गलत प्रस्तुति कर रहे थे। भला ध्रुव जी कैसे चुप रह सकते थे! उन्होंने विनम्रतापूर्वक प्रशिक्षक महोदय का गलती की ओर ध्यानाकर्षण किया, और सहकर्मियों के अनुरोध पर जो सही तरीका था उसे प्रस्तुत करके दिखा दिया। ऐसे थे हमारे मास्टर साब! वो उस पानी की तरह थे जो जीवन देता भी है और जीवन लेता भी है।

I am water
soft enough
to offer life
tough enough
to drown it anyway(७)

ध्रुव जी एक सेल्फ-मेड इन्सान थे। कुछ लोगों की नजर में वो एरोगेंट (अभिमानी) हो सकते हैं, लेकिन ये उनका घमण्ड या अभिमान नहीं बल्कि उनका स्वाभिमान था जो उन्हें किसी गलत प्रवृति या गलत व्यक्ति के आगे झुकने नहीं देता था। गलत प्रवृतियों के विरुद्ध वो सदैव लडे भले ही इसके लिए उन्हें नुकसान हीं क्यों न उठाना पडा हो। उनके अपने ही शब्दों में,
कभी न सर झुकाया मुश्किलों के सामने
दिल खोल मुस्कुराया मुस्किलों के सामने

बेबसी ऐसी रही की तंग जिन्दगी रही
वेबस न राई रहा मुस्किलों के सामने

एक साहित्यकार के रुप में भी उनके अनेक रंग हैं – उपन्यास के अतिरिक्त उन्होंने कविता, कहानी, गजल, समालोचना, आदि विभिन्न विधाओं में अपने कलम का चमत्कार दिखाया है। गजल के तो वे 'सम्राट हैं ही: मैं यहाँ उनकी दो रचनाएं, अंगूठा बोलता (खण्डकाव्य), और द्वारगाथा (महाकाव्य), जिन पर विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार भी व्यक्त किए हैं की संक्षिप्त चर्चा करना चाहूँगा। ये दोनों रचनाएं महाभारत काल से सम्बन्ध रखती हैं। दोनों में कवि ने 'रिभिजिटिंग द पास्ट' (इतिहास का पुनरावलोकन) किया है, पर दोनों हीं महाभारत कथा की पुनरावृतियाँ नहीं हैं। महाभारत काल का सन्दर्भ लेकर कवि ने आधुनिक काल, आज के मानव जीवन की असमानताओं, विषमताओं और गलत प्रवृतियों को न केवल उजागर किया वरन उन पर निर्मम कडा प्रहार भी किया है। कवि सामान्य जन-पक्षधर है। वह समाज के असहायनिम्नवर्ग पर किए गए अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाता है, नारी-शोषण के खिलाफ आवाज बुलन्द करता है, और समाज के सफेद्पोशों की बखिया उधेडता है फिर चाहे वो समाज पूजित तथाकथित 'भीष्म, द्रोण' हीं क्यों न हों। अन्याय चाहे जहाँ हो या जिसके द्वारा भी किया गया हो कवि किसी को नहीं छोड़ता – यही इन दोनों काव्यों की विशेषता भी है और इनकी उपादेयता भी। ये विचार-प्रधान रचनाएं हैं, अनगढ़ पत्थरों की तरह ठोस और खुरदुरे जहाँ जलते सूर्य का ताप है। पर गाहे-बगाहे, कहीं-कहीं खुरदुरे चट्टानों की दरारों से निकलते स्वच्छ जल के फव्वारों की तरह पथरीले विचारों की दरारों से कोमल भावनाओं की नाजुक बेलें भी झाँकती हैं, जो विचारों के मन्थन से बोझिल हुए दिमाग को आराम देती हैं और दिल को पुरसुकुन खुशबुओं से भर देती हैं। ये रचनाएं हिन्दी साहित्य में मील के पत्थर हैं। ये उनके विद्रोही स्वभाव का आईना भी हैं जिसमें उनके विद्रोही स्वभाव के दोनों रंग देखने को मिलते हैं नजरूल के नज्म की तरह:

आमी ओभिमानी चिरो-छुब्दो हियारे कातोरता व्योथा सुनिविरही
  चितो चुम्बोनो चोरो-कोम्पोनो आमी थोरे-थोरेप्रोथमोपुरुषेकुमारिरे ...(८)

उनकी लेखनी हमेशा सामान्य जन के लिए चली। आम आदमी की समस्याएं उनकी रचनाओं का मुख्य विषय रहा, और वास्तविक जीवन में भी वो आम आदमी के लिए, उनके संघर्ष में साथ देने के लिए सदैब उपलब्ध रहे। जन साधारण के साथ देने के लिए उनकी लेखनी हमेशा मुखर रही।

महाकवि मेरे सहपाठी भी थे और साहित्य के सहयात्री भी: पर सबसे अधिक वे मित्र थे मेरे। अनोखी मित्रता थी हमारी – वे ६ फीट लम्बे कदकाठी के, मैं ५ फीट ३ इन्च छोटे कदका; वो शाकाहारी, मैं सर्वभक्षी; वो शराब को जहर समझते थे और वह मेरी मुहलगी है। फिर भी हममें मित्रता थी और रहेगी हमेशा क्यों कि मैं तो अब भी उनसे बातें करता हूँ, सलाह-मशवरा लेता हूँ, अपनी कविताएँ सुनाता हूँ और कभी-कभी मजाक भी कर लेता हूँ – और फिर इन सबके बाद मेरी आँखें भर आती हैं। मुझे मालूम है,
रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई 
तुम जैसे गए वैसे भी जाता नहीं कोई (९)

आप कहाँ चले गए महाकवि!

मुझे अब भी याद है ३ जुलाई २०२१ का दिन। कैसे भूल सकता हूँ मैं वो दिन –  हमनें महाकवि के साथ एक घन्टे की लम्बी बातचीत की थी। जैसे कोइ माँ अपने इकलौते पुत्र को सुलाती है, थपकती है, चुम्बन लेती है, बात करती रहती है पर उसका मन नहीं भरता, उसी तरह मैं उस दिन की यादों को उलटता पलटता रहता  हूँ पर जी नहीं भरता कितने सपनों को हमने साथ-साथ बुना था, कितनी योजनाएँ साथ-साथ बनाई थी उस दिन। और उसके दूसरे दिन खबर आइ कि महाकवि नहीं रहे – अपनी कानों पर विश्वास नहीं हुआ, लगा जैसे किसी ने हृदय को कस के निचोड दिया हो, आँखों के आगे अन्धेरा छा गया। पता नहीं था कि ऐसा भी होता है। फिर चेतना लौटी धीरे-धीरे। हृदय रोता रहा पर दिमाग ने बतलाया कि मृत्यु ने उन्हें हमसे छीन लिया है। पर क्या सचमुच मृत्यु उन्हें हमसे छीन सकता है? क्या मृत्यु में है वो ताकत ? वो तो अमर हैं, मृत्यु पर विजय पाई है उन्होंने। याद आती है मुझे जन डन की वो अमर पंक्तियाँ,

Death be not proud, though some have called thee
Mighty and dreadful, for thou art not so;
For those whom thou thinkst thou dost overthrow
Die not poor death, nor yet canst thou kill me (१०)

मैं  भी कहता हूँ, "ओ मृत्यु तुममे वो सामर्थ्य नहीं कि तुम उन्हें हमसे छीन सको, वो अमर हैं अपनी कृतियों में, पर दिल है कि रोता है,
आप कहाँ चले गए महाकवि!"

उद्धृत पंक्तियाँ
अल्लामा इकबाल(प्रसिद्ध मरहूम उर्दू शायर)
अल्लामा इकबाल(प्रसिद्ध मरहूम उर्दू शायर)
वाल्मिकी रामायण
जावेद अख्तर(उर्दू शायरऔर बलिउड के प्रसिद्ध गीतकार)
मजरूह(मरहूम उर्दू शायर)
कबीर
Rupi Kaur (a modern English poet)
काजी नजरूल इस्लाम(सुप्रसिद्ध बांग्ला कवि)
कैफी आजमी (मरहूम उर्दू शायर)
१० John Donne(a metaphysical poet of the Puritan Age) 






“टुकड़ा-टुकड़ा सच” कविता संग्रह समीक्षा —डॉ. अलका वर्मा / वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह “टुकड़ा-टुकड़ा सच”

वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह “टुकड़ा-टुकड़ा सच”  —डॉ. अलका वर्मा (पुस्तक समीक्षा) वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग...