वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह “टुकड़ा-टुकड़ा सच” —डॉ. अलका वर्मा |
(पुस्तक समीक्षा)
वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह
“टुकड़ा-टुकड़ा सच”
—डॉ. अलका वर्मा
“मनुष्य होना भाग्य है
कवि होना सौभाग्य”
किसी ने कहा है और कितना सटिक कहा है। कविता क्या है? यह कहना कठिन है। किसी ने रसात्मक काव्य कहा है तो किसी ने कहा है—
“वियोगी होगा पहला कवि,
आह से उपजा होगा गान,
निकलकर आँखो से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान।”
इस संग्रह में एक से एक हीरे मोती और माणिक भरे हैं। बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक, महाकाव्य “द्वापर गाथा”, खंडकाव्य “अँगूठा बोलता है” जैसे पुस्तकों के रचयिता महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई साहित्य के हर विधा में अपनी लेखनी चलाई है। इनकी रचनाएँ जहाँ दिल को सुकून प्रदान करती है वही कुछ सोचने को विवश करती है। अंदर से सोए मानव को उत्प्रेरित करता है। सच को सच कहने से डरते नहीं थे। “टुकड़ा-चुकड़ा सच” 145 कविता का अमूल्य संग्रह है। जिसमें समाज की हर समस्या की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। कवि के अनुसार सत्य वचन जोखम भरा धंधा है—
“यह तथ्य
एक सगुण सत्य
स्वार्थ–संचालित नर
विवेकहीन, अंधा है
सत्यभाषण इस युग में
ज़ोखम भरा धंधा है”
शीर्षक-जोख़म
टुकड़ा-टुकड़ा सच महाभारत के पात्रों का पुनः संग्रहण करने का प्रयास किया गया है। इस संग्रह में कवि जाति, कुल, गोत्र की चर्चा ‘पात्रता‘ कविता में करता है—
“पूछते
कुल-गोत्र
जाति-नाम
पात्रता का
प्रतिभा का
आर्यत्व का
आचार्य कृप—
तुम कौन
भीष्म, विदुर, द्रोण
सब के सब मौन
मौन
संपूर्ण कुरु सभा”
शीर्षक-पात्रता
कवि आशावादी है, उसे पूर्ण विश्वास है जागृति आएगी। आजादी कविता में कहता है-
“ऐसा सोच जगेगा
जी हाँ
ज़रुर जगेगा
पृथ्वी पर उगेगा
समता का बिरवा
संपूर्ण सूबा बनेगा
सजग संवेदी पहरुआ
शासक चाकर
सत्ता सबकी दासी
दिन होली, रात दीवाली
उबरेगी नहीं उदासी
जमकर जंग चलेगी
जमकर भंग छनेगी
लड़ते-लड़ते निश्चय ही
मिलकर रहेगी आज़ादी”
शीर्षक-आज़ादी
अभाव में भी जीकर कवि संतुष्ट रहने की प्रेरणा देता है-
“पाप
पीड़-प्रदायक
पुण्य
सुखदायक
वस्त्रविहीन, बुभुक्षित
अस्वस्थ, अशिक्षित
लांक्षित, पददलित होकर भी
संतुष्ट रहना
सर्व धर्म-सार है
लोक व्यवहार है”
शीर्षक-सार
कवि खिन्न है। युद्ध में ब्रह्मास्त्र का प्रयोग तो करते हैं परन्तु संसार को खुश रखने के लिए लोग अपना शौर्य प्रदर्शन क्यों नहीं किया करते है। कवि कहता है-
“क्यों
नहीं छोड़ा
कभी किसी ने
युग व्याधियों पर
ब्रह्मास्त्र
क्यों नहीं किया
कभी किसी ने
शौर्य प्रदर्शन
जन-भीरुता-उनमूलन”
शीर्षक- प्रश्न-1
सच्चाई शीर्षक कविता में कवि एक कटू सत्य की ओर इंगित करता है-
“अमुक
अमुक की औरत
यह बात सही है
मगर
अमुक अमुक का आत्मज
यह निर्विवाद नहीं है”
शीर्षक-सच्चाई
परिस्थितिवश मनुष्य बदलता रहता है। कवि के शब्दों में-
“परिस्थितियाँ
बदलती हैं
बदलता
आदमी
परिवर्तित
उनके वर्ग
और स्वार्थ”
शीर्षक-परिस्थिति
कवि मनुष्य को गिरगिट का दर्जा देते हुए कहता है-
“मानव
स्वार्थपुतला
पल-पल रंग बदलता
कभी भूख देह की
कभी चाह गंध की
कभी प्यास प्रेम की
कभी आग पेट की
कभी शासन की कांक्षा
कभी श्रेष्ठत्व की वांछा
व्याप्त अतृप्ति बड़ी
परिशमन हित
महासंग्राम भी अभीष्ट”
शीर्षक-गिरगिट
कवि महाभारत के पात्र की उपमा देकर आज के प्रजातंत्र की धज्जियाँ उड़ाते हुए कहता है-
“राष्ट्र”
अंधा है
पट्टी बंधी
गांधारी के
प्रजा प्रशांत
भोलीभाली
अवलोक नहीं सकती
अनुभव अक्षि से
शीर्षक-अवलोकन
सत्य सदा ही संत्रस्त रहा है असत्य अपना परचम दाँव-पेंच चलाता रहा है। कवि के शब्दों में-
“सत्य संत्रस्त
असत्य दहाड़ता है
अन्याय न्यायस्कंधारूढ़
बेशर्म प्रहारता है
द्विधाग्रस्त धर्म
करता कुपथगमन
सदा सुजनता-मेमना
निरीह निरवलंब रिरियाता है”
शीर्षक-विडंबना
महाकवि धर्म को साधारण आदमी के लिए हौवा मानते हैं। कवि के शब्दों में-
“जन सामान्य
भेड़-बकरी
कहीं यह कटे
तो कहीं वह चढ़े
क्या फ़र्क़ पड़ा है
पुष्ट होता
सोऽहं भाव
किसी का व्यक्तिगत स्वार्थ
महाराजा को अपनी ही चिंता है
और
अबोध आदमी के लिए
धर्म महज़ एक हौआ है”
शीर्षक-हौआ
महाकवि श्रमिक वर्ग व किसानों के साथ हो रहे शोषण से दुखी है। सरल शब्दों में उनकी बेबसी को उकेरते हैं। कवि के शब्दों में-
“आह न भरते
पीसा जाकर
ज़िंदा रहते
आँसू पीकर
प्रवाहित शोणित
श्रमसीकर
काया पर
पैवंदी बस्तर
सिर पर
सदा आसमानी छप्पर
ग्रीष्म-ताप में तपकर
पावस-पानी में चलकर
खेत-खदान की दलदल में धँसकर
शिशिर बीताते
ठिठुर-ठिठुरकर”
शीर्षक-बेवशी
इतना हीं नहीं कवि कहता है कि इन्किलाब लाने के लिए एक जुट होने की आवश्यकत्ता है। हँसूआ, खुरपा, कुदाल और स्याही, कलम, किताब जब संग-संग नहीं चलेंगे तबतक इन्किलाब नहीं हो सकता। कवि के शब्दों में-
“हँसुआ, खुरपा, कुदाल
स्याही, क़लम, किताब
मिल साथ जगेंगे
आयेगा
इन्क़िलाब
तनकर झोपड़ी झाँकेगी
मुक्ताकाश विशाल
सूरज होगा सबके हित
पावस दूर करे अकाल
सबके घर ख़ुशहाली
नहीं कोई बेहाल”
शीर्षक-इन्क़िलाब
“टुकड़ा-टुकड़ा सच” छोटी-छोटी कविता का संग्रह है। कवि का एक एक शब्द सार्थक है। कम शब्दों की कविता और इतनी संवेदनशील यह राई जी की कलम की उपज है जो छंदमुक्त होते हुए भी मन को भाती है। पाठकवृन्द इस पुस्तक को पढ़कर निराश नहीं होंगे । यह एक पठनीय पुस्तक है। इन कविताओं में कृषक शोषण, राजाका अहम, दलितों का उत्पीड़न, नारी की स्थिति, धर्म का विधान, जनता जनार्दन पर राजनेताओं की मनमानी, कर्म की महत्ता के सभी विचारणीय बिन्दु पर दृष्टिपात किया गया है। यह सारे सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक मुद्दे हर युग में एक से ही रहते हैं। वर्चस्व की लड़ाई चलती रही है और चलती रहेगी।
इस पुस्तक के लेखन के लिए महाकवि राई जी को समाज की स्थिति को अवलोकित करने एवं शोषित वर्गों में चेतना जगाने में अपूर्व सफलता मिली है।
पुस्तक का नाम- “टुकड़ा-टुकड़ा सच” कविता संग्रह
रचनाकार का नाम- ध्रुव नारायण सिंह राई
प्रथम संस्करण- 2022 स्वराज प्रकाशन,
समीक्षक डॉ. अलका वर्मा
त्रिवेणीगंज, जिला- सुपौल,
बिहार, 852139
मो. — 7631307900
___________________
Dr. Alka Verma YouTube Video मुझे मेरे नाम से पुकारो
द्वितीय संस्करण डॉ. अलका वर्मा मुझे मेरे नाम से पुकारो |