अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य), 1997,
ध्रुव नारायण सिंह राई द्वारा रचित खण्डकाव्य में छपी स्तुति
स्तुति
हे हर!
प्रशस्त
कर जीवन-पथ,
सरल
बने इति औ' अथ।
वसन्त नित, गंध मधुर,
सुभग सुमन-पराग-उर
सरसे, हे हर!
मोह मंद, ज्ञान जगे,
परम अर्थ, मद भागे,
सुलक्ष्य, हे हर!
वचन-अर्थ सहज, सती,
बने सदा, मिले सुमति
माते, हे हर!
स्तुति अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य), 1997 ध्रुव नारायण सिंह राई |
अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य), 1997,ध्रुव नारायण सिंह राई |
Very nice miss u sir 😪
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