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Wednesday, March 2, 2022

युगल किशोर प्रसाद / द्वापर गाथा (महाकाव्य), 2012 का जीवन-मूल्य

द्वापर गाथा (महाकाव्य), 2012

जीवन-मूल्य

‘‘द्वापर गाथा‘‘ के रचयिता महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई ने द्वापर युगीन महतादर्शों की आड़ में हुए दुष्कृत्यों और उन्हें अंजाम देनेवाले भीष्म, विदुर, धर्मराज युधिष्ठिर जैसे महानता ओढ़े महत् चरित्रों के खोखलेपन को उजागर कर अपनी यथार्थपरक जीवन-दृष्टि एवं युग-धर्मिता का परिचय दिया है। इसमें पौराणिक कथा और परम्परा को उतना ही स्वीकार किया गया है जितना आधुनिक विचारशीलता और तर्क-बुद्धि के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता है। इस रचना में सही सोच के संदर्भ में ही मनुष्य के भावों, विचारों और अनुभूतियों को अभिव्यक्ति मिली है। कवि कामायनीकार की तरह सक्षम प्रतीत होता है।

            प्रस्तुत महाकाव्य में महाभारत-कथा उसी रूप में विद्यमान है जैसे तीर्थराज प्रयाग की पावन त्रिवेणी में गंगा-यमुना के साथ अन्तःसलिला सरस्वती। महाकवि का उद्देश्य द्वापर युग की कथा को दुहराना कतई नहीं है, उनका महत् उद्देश्य तो तद्युगीन विद्रूपताओं, उच्छृंखलताओं, नैतिक मूल्यों के ह्रास, स्वार्थान्धता, जीवन-मूल्यों के विघटन आदि जिन कारकों से महासमर की पृष्ठभूमि बनी, उनका चित्रणकर तद्युगीन धटनाओं को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर एक नवीन महाकाव्य के सृजन का श्रेय लेना है। कवि यूँ तो श्रेय के लिए नहीं लिखता है किन्तु उसकी विलक्षण और अनुपम प्रस्तुति उसे श्रेय देकर रहती है। राईजी के अनुपम, अनूठे प्रयास को जीवन-मूल्यों के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने-परखने की जरूरत है।

          विवेक सम्मत विचारों के साथ-साथ प्रस्तुत रचना का भाषिक सौंदर्य भी प्रभावित करने वाला है। प्रतिपादित विचार मन पर स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं। यह भाषा का कमाल है। ये भाषा को शब्दों में न बाँधकर शब्दों की नाड़ी पकड़ते हैं, और उन्हे उचित स्थान पर प्रयुक्त करते हैं। उनका यही गुण उन्हे श्रेष्ठ साहित्यकार की प्रतिष्ठा प्रदान करता है।

                                      

कविवर युगल किशोर प्रसाद
03.10.2007
न्यू विग्रहपुर
बिहारी पथपटना-1
मो0: +917352754585



                                                                          










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द्वापर गाथा
(महाकाव्य)
ध्रुव नारायण सिंह राई 

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  महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई




द्वापर गाथा
 (महाकाव्य)
2012
ध्रुव नारायण सिंह राई


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साहित्य: सिद्धांत
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Thursday, February 24, 2022

कविता- ‘सावधान! इस गली में एक कवि रहता है' महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई के संदर्भ में

 

महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई के संदर्भ में कविता ‘सावधान! इस गली में एक कवि रहता है’  ‘कविवर रामचन्द्र मेहता’ के द्वारा रचना की गई और यह कविता ‘परती-पलार(2007)’ द्विजदेनी स्मृति विशेषांक जनवरी-फरवरी में छपि थी। इस कविता के माध्यम से महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई जी के जीवन के पहलुओ का वर्णन तथा चित्रण मिलता है।  उनके अकसमात निधन पश्चात निवास स्थल जाने वाले रास्ते का नामकरन उनके नाम 'ध्रुव नारायण सिंह राई पथ' पे किया गया है।  

कविता इस प्रकार है — 

सावधान! इस गली

में एक कवि रहता है।

(महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई के संदर्भ में) 

काव्यकार रामचन्द्र मेहता’

लेखक/अधिवक्ता




   

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

डूबा रहता किसी चिंतन में

खोया-खोय-सा रहता है।

जब सोई रहती है दुनिया

जग कर विशेष कुछ लिखता है।

जाने क्या-क्या लिख-लिखकर वह

पन्नों को रँगता रहता है?

 

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

कभी न गुजरना इस गली से

राह रोककर कुछ कहता है—

‘कुछ विरच साहित्य सेवा कर’

यही कुछ अटपटा बकता है।

क्या जाने क्या मिलता उसको

अपनी ही धुन में रहता है।

 

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

मत पढ़ो कभी उसकी रचना

जात-धरम सब मिट जायेगा।

कभी न मानो उसका कहना

भेद तुम्हारा खुल जायेगा।

मानवता की गुहार लगाते

कविताएँ रचता रहता है।

 

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

अपना विरूप रूप धुलाने

तुमलोग वहाँ क्यों जाओगे?

भोगवाद की सहज विरासत

सारी निधियाँ लुटवाओगे।

पतित हो गए हो तुम कैसे

दिखाने की कोशिश करता है।

 

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

मत पूछो बेमानी बातें

पोल सहज सब खुल जाता है।

अजी, नहीं कुछ बचता बाकी

बेनकाब वह कर देता है।

साम्यवाद की जला मशालें

मुक्ति-गीत गाता रहता है।

 

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

कालिदास की सुभग कल्पना

विद्यापति का सरस श्रृंगार।

सूरदास की अतल गहराई

तुलसीदास जैसा विस्तार।

जनकवि कबीर का फक्कड़पन

हरदम दिखलाता रहता है।

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।


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ध्रुव नारायण सिंह राई की ग़ज़ल (ये हसीं हँसी गर मिली है मुझको)

अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य), 1997, ध्रुव नारायण सिंह राई

कवि का बेटा -ई. आलोक राई




 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

Thursday, February 17, 2022

अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य), 1997, ध्रुव नारायण सिंह राई

 

अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य), 1997,

 ध्रुव नारायण सिंह राई द्वारा रचित खण्डकाव्य में छपी स्तुति

महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई


स्तुति


हे हर!

प्रशस्त कर जीवन-पथ,

सरल बने इति औ' अथ।

 

वसन्त नित, गंध मधुर,

सुभग सुमन-पराग-उर

सरसे, हे हर!

 

मोह मंद, ज्ञान जगे,

परम अर्थ, मद भागे,

सुलक्ष्य, हे हर!

 

वचन-अर्थ सहज, सती,

बने सदा, मिले सुमति

माते, हे हर!


स्तुति
अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य), 1997
ध्रुव नारायण सिंह राई



अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य), 1997,

ध्रुव नारायण सिंह राई

 


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कविवर युगल किशोर प्रसाद / द्वापर गाथा (महाकाव्य) ध्रुव नारायण सिंह राई, 2012 का जीवन-मूल्य का वेब लिंक 




“टुकड़ा-टुकड़ा सच” कविता संग्रह समीक्षा —डॉ. अलका वर्मा / वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह “टुकड़ा-टुकड़ा सच”

वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह “टुकड़ा-टुकड़ा सच”  —डॉ. अलका वर्मा (पुस्तक समीक्षा) वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग...