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(के चतुर्थ सर्ग की कुछ अंतिम पंक्तियाँ)
श्रेष्ठ जन का दिया गया वचन
कभी नहीं मिथ्या होता है,
करने उसको पूर्ण अहर्निश
काल सतत चलता रहता है।
किंतु, क्षमा करें मम
धृष्टता
है आचार्य-शिष्य ही
वन में।
वह न केवल एक श्रेष्ठ वीर
आगे है मुझसे भी फ़न में
वह एकलव्य, परमवीर
वह,
शूद्र समझकर अस्वीकारा।
बन परम तेजवान उसीने
स्वयं शौर्य को ही ललकारा।
नहीं पाया फिर भी वह ज्ञान।
कैसा सफल धनुर्धर है जो
बाणों से बद्ध करे ज़बान।
अलौकिक उसका शर-संधान।
तुझ समान नरवीर कहीं भी;
नर निमित्त कुछ नहीं असंभव
नहीं किसी की अंतिम सीमा।
करे सद्प्रयत्न, संकल्प दृढ़़
पाता वह सर्वोत्तम गरिमा।
अतः सदैव रहो प्रयत्नरत
वृथा सोचकर समय गँवाना।
अगर टिकी हो दृष्टि लक्ष्यपर
होता चरणावनत ज़माना।
नर का संबल कर्म जगत् में
यही गढ़ता उज्ज्वल इतिहास,
जो सुनिरत निशिवासर इसमें
वही करता बहुमुखी विकास।
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पुस्तक समीक्षा 👇
ध्रुव नारायण सिंह राई |
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आलोक राई के द्वारा अंगूठा बोलता है (खण्डकाव्य) से एकलव्य वार्तालाप से कुछ पंक्तियों का वाचन
Angutha Bolta Hai Khandkavya by Dhruva Narayan Singh Rai, First Edition 1997, Madhavika Prakashan |
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These words are so powerful to. I am waiting to read the newly published second edition of this epic. 🙏🙏🙏
ReplyDeleteIndeed a great epic by our Gurujee🙏
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