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Wednesday, October 19, 2022

अँगूठा बोलता है खण्डकाव्य ध्रुव नारायण सिंह राई द्वारा रचित की कुछ पंक्तियाँ

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 (के चतुर्थ सर्ग  की कुछ अंतिम पंक्तियाँ)


श्रेष्ठ जन का दिया गया वचन
कभी नहीं मिथ्या होता है,
करने उसको पूर्ण अहर्निश
काल सतत चलता रहता है।
 
किंतु, क्षमा करें मम धृष्टता
है आचार्य-शिष्य ही वन में।
वह न केवल एक श्रेष्ठ वीर
आगे है मुझसे भी फ़न में
 
वह एकलव्य, परमवीर वह,
शूद्र समझकर अस्वीकारा।
बन परम तेजवान उसीने
स्वयं शौर्य को ही ललकारा।
 
मैंने पायी शिक्षा विधिवत
नहीं पाया फिर भी वह ज्ञान।
कैसा सफल धनुर्धर है जो
बाणों से बद्ध करे ज़बान।
 
अनिर्वच उसके मुख की कांति,
अटल आस्था, अविचल अवधान;
नहीं कहीं किंचित् इस जग में
अलौकिक उसका शर-संधान।
 
साधु, साधु, हे परम प्रिय पार्थ,
नहीं मिलेगा निखिल भुवन में
तुझ समान नरवीर कहीं भी;
निश्चित समझो अपने मन में।
 
नर निमित्त कुछ नहीं असंभव
नहीं किसी की अंतिम सीमा।
करे सद्प्रयत्न, संकल्प दृढ़़
पाता वह सर्वोत्तम गरिमा।
 
अतः सदैव रहो प्रयत्नरत
वृथा सोचकर समय गँवाना।
अगर टिकी हो दृष्टि लक्ष्यपर
होता चरणावनत ज़माना।
 
नर का संबल कर्म जगत् में
यही गढ़ता उज्ज्वल इतिहास,
जो सुनिरत निशिवासर इसमें
वही करता बहुमुखी विकास।
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ध्रुव नारायण सिंह राई


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विडियोज देखें

विनीता राई के द्वारा अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य) का षष्ठम सर्ग का पाठ

आलोक राई के द्वारा अंगूठा बोलता है  (खण्डकाव्य) से एकलव्य  वार्तालाप से  कुछ पंक्तियों का वाचन




Angutha Bolta Hai Khandkavya
by Dhruva Narayan Singh Rai,
First Edition 1997, Madhavika Prakashan

      


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