आज फिर आस्माँ में घनी घटा छाने लगी है
मुझे किसी
के गेसुओं की याद आने लगी है
मंडरा रहे
मस्त भौंरे गुल-ए-गुलाब पे
रफ़्ता-रफ़्ता
ख़ुमारी सरपर छाने लगी है
माहताबे-रूख़
खेले आँख मिचौली, ख़ुशी
रात भी
ग़ज़ल आज गुनगुनाने लगी है
तीर-ए-नज़र
से क्यूँ होता है दिल धायल
ये अदा
चिलमन में आग लगाने लगी है
मय, मैकदा
और शोख़ी-ए-साक़ी सब कुछ
कहीं दूर से
सदा-ए-आरज़ू आने लगी है
ग़ज़ल सम्राट ध्रुव नारायण सिंह राई |
आज फिर आस्माँ में घनी घटा छाने लगी है ग़ज़ल सम्राट ध्रुव नारायण सिंह राई रचित ग़ज़ल का निर्मला विष्ट जी के द्वारा वाचन का युटुब वीडियो