जन लेखक संध की केन्द्रीय पत्रिका अंक 2022, जन आकांक्षा |
ई. आलोक राई शिक्षा- बी.टेक. इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक, बी.एड. |
पिता महाकवि की यादें
(पिता ध्रुव नारायण सिंह राई जी के स्मरण
में)
बैठा मैं
यूं चिंतन मनन में
वो छोड़ गये बीच मजधार मुझे
खोज रहा हूँ किनारा।
छू के गई
पवन के वेग-सा अंतर्मन
उनकी बातें उनका साथ
एक उर्जा एक एहसास।
मैं हूँ आज उनकी यादों के पास
अनुगूँज उनकी बातों की
उनके कर्मों का प्रभाव
झकझोर रहा मूझे मन-मन।
वे मददगार लोगों के
दया थी उनमें भरमार
ना धन संचय, ना चिंता भविष्य की
बस करते करते कभी ना रूकते
हर क्षेत्र को ढकते
सुना बहुतों से ये सारी बातें
आज दिख रहा कर्मों की झंकार।
उनका साहित्य प्रेम रहा छलक
द्वापर गाथा महाकाव्य
बंद नेत्र खोल रहा है
आज भी अँगूठा बोल रहा है
टुकड़ा-टुकड़ा सच खोल रहा है
ग़ज़लें बयाँ कर रहीं है दिलों को
मधुर गीत मधु जीवन में घोल रहा है
समय अपने वेग से सरक रहा है
मैं आज भी उनसे रहा सीख।
मन तरंगित हो आज
बैठा मैं
यूं चिंतन मन में
दो शब्दों से कुछ बातें बोल रहा।
जन आकांक्षा, जन लेखक संध की केन्द्रीय
पत्रिका अंक 2022 में छपि मेरी कविता जिसे मैं अपने पिताजी को समर्पित किया है और जन आकांक्षा पत्रिका के संपादन समूह को मेरा
धन्यवाद है। और आप सभी को धन्यवाद तथा आशा करता हूँ आपका मेरे प्रति प्यार और स्नेह
बना रहे।
जन आकांक्षा जन लेखक संध की केन्द्रीय पत्रिका अंक 2022 |