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Friday, March 25, 2022

कवि का बेटा -ई. आलोक राई

 यह उस समय की मेरी रचना है जब मैं छोटा था और पिता महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई को समझ नहीं पा रहा था। उनकी वयस्तता और बाहर जाने से एक खालीपन सा लगना और बहुत सारे सवालात तथा समस्याओं से घिड़ जाना। कवि सम्मेलनों का उनके द्वारा करवाना, कवि सम्मेलनों में उनका दूसरे जगहों पर जाना तथा साहित्य से जूड़े और उनके लगाव के लिए उनका समर्पन तथा विभिन्न बातों को मेरे बाल कवि मन से कवि के पुत्र होना कुछ कठीन सा महसूस होना और इस कविता को मैंने माध्यम बनाकर पिता महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई के लिए लिखी थी की वे इसको पढ़ कुछ समझे(मैं भी बाल कवि बन उनके साथ कवि सम्मेलनों में जाया करता था, वे मेरे लेखन के पहले से ही प्रेरणा श्रोत रहे हैं), उन्हें कविता बहुत अच्छी लगी और ये कविता क्षणदा पत्रिका में छपि थी जो मैं उनकों समर्पित कर रहा हूँ, अब वो नहीं रहे बस उनके साथ गुजारे लम्हें साथ हैं।                                                                                                                                                            धन्यवाद                               

 ई. आलोक राई / दीपक सिंह
                                                                                       






कवि का बेटा

 

मैं एक कवि का बेटा

पर नहीं जानता उनकी भाषा

किसी ऐसे पल की तलाश में

गुजरे जा रहे मेरे सारे पल

कि मैं बन सकूँ समर्थ।

 

किस तरह बीत रहा यह जीवन

हर पल एक नया तर्जुवा

ओतप्रोत हूँ मैं अन्दर से

कि कहलाता हूँ कवि का बेटा

कवि कहलाना फख्र की बात

शायद जैसे शान-ए-शहंशाह का बेटा।

 

कवियों का आना घर में

जैसे बड़ा तर्जुबा

होने को होते कवि सम्मेलन

पर पड़ता भार घर पर

चन्दा की राशि कम और ढ़ेर सारे खर्च

खुद पर पड़ता बोझा

दाजू-भाई सगा-संबंधि

पीठ पीछे बोलते मनमानी बात

उनको नहीं मतलब कौन क्या बोल रहा

फिर भी मैं जुटा कवि सम्मेलन के कामों में

कभी यहाँ यह काम, कभी वहाँ वह काम।

 

कवियों की होती बातें निराली

और उन में होती बातें खास

भाती उनको अपनी रचनाएँ

सुनना और सुनाना

आनन्द के इन चन्द लम्होंके लिए

भूल जाते वे घर-परिवार

बाल-बच्चे।

 

मैं स्वीकारता, मैं नहीं ज्यादा जानता

पर मैं हूँ कवि का बेटा

एक अनजाना-सा डर हमेशा मन में

न जाने क्या होगा अगले क्षण में

जब बिमार थे पपा

उनकी चिन्ता हमारी थी

ढ़ेर सारी सम्स्याएँ थी

शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक

हम देख-रेख करते थे

सान्त्वना देते थे

चिकित्सकों के पास ले जाते थे।

 

अब चंगा होकर

कवियों की कतार में खड़े हैं

और वे कवि हैं और मैं कवि का बेटा

बिखड़ा पड़ा परिवार भूल गये हैं

वे ध्रुव नारायण सिंह राई हैं

वे लोकप्रिय कवि हैं।

 

आज हो रही पैसे की मारामारी

फिर भी वे गये देश की राजधानी

कवियों के सम्मेलन में सुनाने अपनी कविता

क्योंकि वे कवि हैं

सब कुछ अस्तव्यस्त पड़े हैं

मैं हूँ घर पर माँ के साथ

और समझ में आ रहा है

कि मैं हूँ कवि का बेटा।

महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई



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