सफ़र-ए-ज़िंदगी
(ग़ज़ल)
तय
करना है साथ-साथ सफ़र-ए-ज़िंदगी
मुश्किलों
में भी लगे सुहाना सफ़र-ए-ज़िंदगी
मुझको
होगा दर्द, अगर
तुमको काँटे चुभे
देह
दो और जाँ एक होगी सफ़र-ए-ज़िंदगी
चलते-चलते
थकी तो थाम लूँगा हाथ तेरा
ख़ुशी-ख़ुशी
तय हो जायेगा सफ़र-ए-ज़िंदगी
हम
होंगे न गुमराह चाहे जैसा हो ज़माना
ऐसा
अर्मान-ए-इश्क़ मेरा सफ़र-ए-ज़िंदगी
चाहे
जो भी हो जाये मुहब्बत कम नहीं होगी
हमेशा
रहेगा ख़ुशनुमा सफ़र-ए-ज़िंदगी
ग़ज़ल सम्राट ध्रुव नारायण सिंह राई |
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