Wednesday, March 30, 2022

ग़ज़ल -ध्रुव नारायण सिंह राई/आज फिर आस्माँ में घनी घटा छाने लगी है

आज फिर आस्माँ में घनी घटा छाने लगी है

मुझे किसी के गेसुओं की याद आने लगी है

 

मंडरा रहे मस्त भौंरे गुल-ए-गुलाब पे

रफ़्ता-रफ़्ता ख़ुमारी सरपर छाने लगी है

 

माहताबे-रूख़ खेले आँख मिचौली, ख़ुशी

रात भी ग़ज़ल आज गुनगुनाने लगी है

 

तीर-ए-नज़र से क्यूँ होता है दिल धायल

ये अदा चिलमन में आग लगाने लगी है

 

मय, मैकदा और शोख़ी-ए-साक़ी सब कुछ

कहीं दूर से सदा-ए-आरज़ू आने लगी है

ग़ज़ल सम्राट ध्रुव नारायण सिंह राई

   ग़ज़ल -ध्रुव नारायण सिंह राई






आज फिर आस्माँ में घनी घटा छाने लगी है ग़ज़ल सम्राट ध्रुव नारायण सिंह राई रचित ग़ज़ल का निर्मला विष्ट जी के द्वारा वाचन का युटुब वीडियो


ध्रुव नारायण सिंह राई की ग़ज़ल (ये हसीं हँसी गर मिली है मुझको)

Friday, March 25, 2022

कवि का बेटा -ई. आलोक राई

 यह उस समय की मेरी रचना है जब मैं छोटा था और पिता महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई को समझ नहीं पा रहा था। उनकी वयस्तता और बाहर जाने से एक खालीपन सा लगना और बहुत सारे सवालात तथा समस्याओं से घिड़ जाना। कवि सम्मेलनों का उनके द्वारा करवाना, कवि सम्मेलनों में उनका दूसरे जगहों पर जाना तथा साहित्य से जूड़े और उनके लगाव के लिए उनका समर्पन तथा विभिन्न बातों को मेरे बाल कवि मन से कवि के पुत्र होना कुछ कठीन सा महसूस होना और इस कविता को मैंने माध्यम बनाकर पिता महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई के लिए लिखी थी की वे इसको पढ़ कुछ समझे(मैं भी बाल कवि बन उनके साथ कवि सम्मेलनों में जाया करता था, वे मेरे लेखन के पहले से ही प्रेरणा श्रोत रहे हैं), उन्हें कविता बहुत अच्छी लगी और ये कविता क्षणदा पत्रिका में छपि थी जो मैं उनकों समर्पित कर रहा हूँ, अब वो नहीं रहे बस उनके साथ गुजारे लम्हें साथ हैं।                                                                                                                                                            धन्यवाद                               

 ई. आलोक राई / दीपक सिंह
                                                                                       






कवि का बेटा

 

मैं एक कवि का बेटा

पर नहीं जानता उनकी भाषा

किसी ऐसे पल की तलाश में

गुजरे जा रहे मेरे सारे पल

कि मैं बन सकूँ समर्थ।

 

किस तरह बीत रहा यह जीवन

हर पल एक नया तर्जुवा

ओतप्रोत हूँ मैं अन्दर से

कि कहलाता हूँ कवि का बेटा

कवि कहलाना फख्र की बात

शायद जैसे शान-ए-शहंशाह का बेटा।

 

कवियों का आना घर में

जैसे बड़ा तर्जुबा

होने को होते कवि सम्मेलन

पर पड़ता भार घर पर

चन्दा की राशि कम और ढ़ेर सारे खर्च

खुद पर पड़ता बोझा

दाजू-भाई सगा-संबंधि

पीठ पीछे बोलते मनमानी बात

उनको नहीं मतलब कौन क्या बोल रहा

फिर भी मैं जुटा कवि सम्मेलन के कामों में

कभी यहाँ यह काम, कभी वहाँ वह काम।

 

कवियों की होती बातें निराली

और उन में होती बातें खास

भाती उनको अपनी रचनाएँ

सुनना और सुनाना

आनन्द के इन चन्द लम्होंके लिए

भूल जाते वे घर-परिवार

बाल-बच्चे।

 

मैं स्वीकारता, मैं नहीं ज्यादा जानता

पर मैं हूँ कवि का बेटा

एक अनजाना-सा डर हमेशा मन में

न जाने क्या होगा अगले क्षण में

जब बिमार थे पपा

उनकी चिन्ता हमारी थी

ढ़ेर सारी सम्स्याएँ थी

शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक

हम देख-रेख करते थे

सान्त्वना देते थे

चिकित्सकों के पास ले जाते थे।

 

अब चंगा होकर

कवियों की कतार में खड़े हैं

और वे कवि हैं और मैं कवि का बेटा

बिखड़ा पड़ा परिवार भूल गये हैं

वे ध्रुव नारायण सिंह राई हैं

वे लोकप्रिय कवि हैं।

 

आज हो रही पैसे की मारामारी

फिर भी वे गये देश की राजधानी

कवियों के सम्मेलन में सुनाने अपनी कविता

क्योंकि वे कवि हैं

सब कुछ अस्तव्यस्त पड़े हैं

मैं हूँ घर पर माँ के साथ

और समझ में आ रहा है

कि मैं हूँ कवि का बेटा।

महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई



Wednesday, March 23, 2022

मैं आईना क्या देखूँ / ग़ज़ल- ध्रुव नारायण सिंह राई

 

ध्रुव नारायण सिंह राई

                        





                          मैं आईना क्या देखूँ

                                                  (ग़ज़ल)

 

मैं आईना क्या देखूँ मेरा आईना तो तुम हो

अक्स-ए-रूह देखता हूँ मेरा आईना तो तुम हो

 

मैनें जहाँ में जो भी देखा सिर्फ तेरा ही रंग देखा

शान-ए-हयात क्या देखूँ मेरा आईना तो तुम हो

 

सैरकर तेरे आँखों का मैं सैर करता जहाँ का

बाहर क्यों कहीं मैं जाऊँ मेरा आईना तो तुम हो

 

रंग-रंग के नज़ारे तेरे रूख़ो-बदन में क़ैद

मैं देख मचल जाता हूँ मेरा आईना तो तुम हो

 

जहां कहीं भी जमीं पर मैंने मंज़रे-बहार देखा

बहार में तुम ही तुम थी मेरा आईना तो तुम हो

...............................


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ग़ज़ल -ध्रुव नारायण सिंह राई/आज फिर आस्माँ में घनी घटा छाने लगी है

ध्रुव नारायण सिंह राई की ग़ज़ल (सफ़र-ए-ज़िंदगी)


मैं आईना क्या देखूँ , ग़ज़ल सम्राट ध्रुव नारायण सिंह राई के द्वारा  मैं आईना क्या देखूँ  ग़ज़ल के वाचन का युटुब वीडियो 





कविवर युगल किशोर प्रसाद (कविता : बरसात-उमड़ते बादल)
 

Wednesday, March 2, 2022

युगल किशोर प्रसाद / द्वापर गाथा (महाकाव्य), 2012 का जीवन-मूल्य

द्वापर गाथा (महाकाव्य), 2012

जीवन-मूल्य

‘‘द्वापर गाथा‘‘ के रचयिता महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई ने द्वापर युगीन महतादर्शों की आड़ में हुए दुष्कृत्यों और उन्हें अंजाम देनेवाले भीष्म, विदुर, धर्मराज युधिष्ठिर जैसे महानता ओढ़े महत् चरित्रों के खोखलेपन को उजागर कर अपनी यथार्थपरक जीवन-दृष्टि एवं युग-धर्मिता का परिचय दिया है। इसमें पौराणिक कथा और परम्परा को उतना ही स्वीकार किया गया है जितना आधुनिक विचारशीलता और तर्क-बुद्धि के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता है। इस रचना में सही सोच के संदर्भ में ही मनुष्य के भावों, विचारों और अनुभूतियों को अभिव्यक्ति मिली है। कवि कामायनीकार की तरह सक्षम प्रतीत होता है।

            प्रस्तुत महाकाव्य में महाभारत-कथा उसी रूप में विद्यमान है जैसे तीर्थराज प्रयाग की पावन त्रिवेणी में गंगा-यमुना के साथ अन्तःसलिला सरस्वती। महाकवि का उद्देश्य द्वापर युग की कथा को दुहराना कतई नहीं है, उनका महत् उद्देश्य तो तद्युगीन विद्रूपताओं, उच्छृंखलताओं, नैतिक मूल्यों के ह्रास, स्वार्थान्धता, जीवन-मूल्यों के विघटन आदि जिन कारकों से महासमर की पृष्ठभूमि बनी, उनका चित्रणकर तद्युगीन धटनाओं को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर एक नवीन महाकाव्य के सृजन का श्रेय लेना है। कवि यूँ तो श्रेय के लिए नहीं लिखता है किन्तु उसकी विलक्षण और अनुपम प्रस्तुति उसे श्रेय देकर रहती है। राईजी के अनुपम, अनूठे प्रयास को जीवन-मूल्यों के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने-परखने की जरूरत है।

          विवेक सम्मत विचारों के साथ-साथ प्रस्तुत रचना का भाषिक सौंदर्य भी प्रभावित करने वाला है। प्रतिपादित विचार मन पर स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं। यह भाषा का कमाल है। ये भाषा को शब्दों में न बाँधकर शब्दों की नाड़ी पकड़ते हैं, और उन्हे उचित स्थान पर प्रयुक्त करते हैं। उनका यही गुण उन्हे श्रेष्ठ साहित्यकार की प्रतिष्ठा प्रदान करता है।

                                      

कविवर युगल किशोर प्रसाद
03.10.2007
न्यू विग्रहपुर
बिहारी पथपटना-1
मो0: +917352754585



                                                                          










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साहित्य: सिद्धांत
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भारतीय मार्क्सवादी
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Monday, February 28, 2022

ध्रुव नारायण सिंह राई की ग़ज़ल (ये हसीं हँसी गर मिली है मुझको)


ग़ज़ल सम्राट ध्रुव नारायण सिंह राई

ये हसीं हँसी गर मिली है मुझको 

 

ये हसीं हँसी गर मिली है मुझको

सब तेरी मेहरबानी है समझो

 

वर्ना कौन होता मेरे ग़म का क़द्रदाँ

सबकी अपनी परीशानी है समझो

 

जहाँ रिश्ता टिका हो लेन-देन पर

वह रिश्ता भी कैसा इंसानी समझो

 

बेक़रार दिल कुछ कहे भी तो क्या

रोना-धोना कितना बेमानी समझो

 

बदल बदल रही बराबर फ़जा

इक उम्मीद पे फिरता पानी समझो


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Sunday, February 27, 2022

ध्रुव नारायण सिंह राई की ग़ज़ल (सफ़र-ए-ज़िंदगी)


       सफ़र-ए-ज़िंदगी

                              (ग़ज़ल)
 

तय करना है साथ-साथ सफ़र-ए-ज़िंदगी

मुश्किलों में भी लगे सुहाना सफ़र-ए-ज़िंदगी

 

मुझको होगा दर्द, अगर तुमको काँटे चुभे

देह दो और जाँ एक होगी सफ़र-ए-ज़िंदगी

 

चलते-चलते थकी तो थाम लूँगा हाथ तेरा

ख़ुशी-ख़ुशी तय हो जायेगा सफ़र-ए-ज़िंदगी

 

हम होंगे न गुमराह चाहे जैसा हो ज़माना

ऐसा अर्मान-ए-इश्क़ मेरा सफ़र-ए-ज़िंदगी

 

चाहे जो भी हो जाये मुहब्बत कम नहीं होगी

हमेशा रहेगा ख़ुशनुमा सफ़र-ए-ज़िंदगी


ग़ज़ल सम्राट ध्रुव नारायण सिंह राई











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ध्रुव नारायण सिंह राई की ग़ज़ल (ये हसीं हँसी गर मिली है मुझको)

मैं आईना क्या देखूँ / ग़ज़ल- ध्रुव नारायण सिंह राई


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सुरेन्द्र भारती जी(गीतकार) के गीत चुपके से सनम तुम आ जाना


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Thursday, February 24, 2022

कविता- ‘सावधान! इस गली में एक कवि रहता है' महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई के संदर्भ में

 

महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई के संदर्भ में कविता ‘सावधान! इस गली में एक कवि रहता है’  ‘कविवर रामचन्द्र मेहता’ के द्वारा रचना की गई और यह कविता ‘परती-पलार(2007)’ द्विजदेनी स्मृति विशेषांक जनवरी-फरवरी में छपि थी। इस कविता के माध्यम से महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई जी के जीवन के पहलुओ का वर्णन तथा चित्रण मिलता है।  उनके अकसमात निधन पश्चात निवास स्थल जाने वाले रास्ते का नामकरन उनके नाम 'ध्रुव नारायण सिंह राई पथ' पे किया गया है।  

कविता इस प्रकार है — 

सावधान! इस गली

में एक कवि रहता है।

(महाकवि ध्रुव नारायण सिंह राई के संदर्भ में) 

काव्यकार रामचन्द्र मेहता’

लेखक/अधिवक्ता




   

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

डूबा रहता किसी चिंतन में

खोया-खोय-सा रहता है।

जब सोई रहती है दुनिया

जग कर विशेष कुछ लिखता है।

जाने क्या-क्या लिख-लिखकर वह

पन्नों को रँगता रहता है?

 

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

कभी न गुजरना इस गली से

राह रोककर कुछ कहता है—

‘कुछ विरच साहित्य सेवा कर’

यही कुछ अटपटा बकता है।

क्या जाने क्या मिलता उसको

अपनी ही धुन में रहता है।

 

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

मत पढ़ो कभी उसकी रचना

जात-धरम सब मिट जायेगा।

कभी न मानो उसका कहना

भेद तुम्हारा खुल जायेगा।

मानवता की गुहार लगाते

कविताएँ रचता रहता है।

 

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

अपना विरूप रूप धुलाने

तुमलोग वहाँ क्यों जाओगे?

भोगवाद की सहज विरासत

सारी निधियाँ लुटवाओगे।

पतित हो गए हो तुम कैसे

दिखाने की कोशिश करता है।

 

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

मत पूछो बेमानी बातें

पोल सहज सब खुल जाता है।

अजी, नहीं कुछ बचता बाकी

बेनकाब वह कर देता है।

साम्यवाद की जला मशालें

मुक्ति-गीत गाता रहता है।

 

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।

कालिदास की सुभग कल्पना

विद्यापति का सरस श्रृंगार।

सूरदास की अतल गहराई

तुलसीदास जैसा विस्तार।

जनकवि कबीर का फक्कड़पन

हरदम दिखलाता रहता है।

सावधान! इस गली में एक कवि रहता है।


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ध्रुव नारायण सिंह राई की ग़ज़ल (ये हसीं हँसी गर मिली है मुझको)

अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य), 1997, ध्रुव नारायण सिंह राई

कवि का बेटा -ई. आलोक राई




 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

“टुकड़ा-टुकड़ा सच” कविता संग्रह समीक्षा —डॉ. अलका वर्मा / वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह “टुकड़ा-टुकड़ा सच”

वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग्रह “टुकड़ा-टुकड़ा सच”  —डॉ. अलका वर्मा (पुस्तक समीक्षा) वास्तविकता से रुबरु कराती है यह काव्य संग...